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क्र॒तू॒यन्ति॑ क्षि॒तयो॒ योग॑ उग्राशुषा॒णासो॑ मि॒थो अर्ण॑सातौ। सं यद्विशोऽव॑वृत्रन्त यु॒ध्मा आदिन्नेम॑ इन्द्रयन्ते अ॒भीके॑ ॥४॥

English Transliteration

kratūyanti kṣitayo yoga ugrāśuṣāṇāso mitho arṇasātau | saṁ yad viśo vavṛtranta yudhmā ād in nema indrayante abhīke ||

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Pad Path

क्र॒तु॒ऽयन्ति॑। क्षि॒तयः॑। योगे॑। उ॒ग्र॒। आ॒शु॒षा॒णासः॑। मि॒थः। अर्ण॑ऽसातौ। सम्। यत्। विशः॑। अव॑वृत्रन्त। यु॒ध्माः। आत्। इत्। नेमे॑। इ॒न्द्र॒य॒न्ते॒। अ॒भीके॑ ॥४॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:24» Mantra:4 | Ashtak:3» Adhyay:6» Varga:11» Mantra:4 | Mandal:4» Anuvak:3» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब अधर्मत्याग से तथा अच्छे कर्म से प्रज्ञा और ऐश्वर्यवृद्धि विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (उग्र) तीक्ष्णस्वभावयुक्त राजन् ! (यत्) जो (क्षितयः) मनुष्य (योगे) मिलने वा यम नियमादिकों के अनुष्ठान में (आशुषाणासः) शीघ्र करनेवाले (मिथः) परस्पर प्रीतियुक्त हुए (अर्णसातौ) प्राप्त विभाग में (क्रतूयन्ति) बुद्धि कर्म्मों की इच्छा करते हैं और (विशः) प्रजा (इन्द्रयन्ते) स्वामी करती हैं (युध्माः) युद्ध करनेवाले (नेमे) नायक अर्थात् अग्रणी लोग (अभीके) समीप में (सम्, अववृत्रन्त) विरोध से धन को प्राप्त हों और (आत्) (इत्) उसी समय आपके भृत्य हों ॥४॥
Connotation: - योगाभ्यास के विना बुद्धि नहीं बढ़ती है और बुद्धि के विना धन और आत्मा की सिद्धि नहीं होती है और विद्या पुरुषार्थ और न्याय के विना प्रजा का पालन-नहीं कर सकते हैं ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथाधर्मत्यागेन सुकर्मणा प्रज्ञैश्वर्यवर्धनविषयमाह ॥

Anvay:

हे उग्र राजन् ! यद्ये क्षितयो योग आशुषाणासो मिथः प्रीतिमन्तः सन्तोऽर्णसातौ क्रतूयन्ति विश इन्द्रयन्ते युध्मा नेमेऽभीके समववृत्रन्त ताऽऽदिदेव तव भृत्याः सन्तु ॥४॥

Word-Meaning: - (क्रतूयन्ति) प्रज्ञां कर्म्माणि चेच्छन्ति (क्षितयः) मनुष्याः (योगे) समागमे यमाऽऽद्यनुष्ठाने वा (उग्र) तीक्ष्णस्वभाव (आशुषाणासः) शीघ्रकारिणः (मिथः) परस्परम् (अर्णसातौ) प्राप्तविभागे (सम्) (यत्) ये (विशः) प्रजाः (अववृत्रन्त) विरोधेन धनं प्राप्नुवन्तु (युध्माः) योद्धारः (आत्) (इत्) एव (नेमे) नियन्तारः (इन्द्रयन्ते) इन्द्रं स्वामिनं कुर्वते (अभीके) समीपे ॥४॥
Connotation: - न हि योगाऽभ्यासमन्तरा प्रज्ञा वर्धते, न प्रज्ञया विना धनात्मसिद्धिर्जायते, न विद्यापुरुषार्थन्यायैरन्तरा प्रजापालनं कर्त्तुं शक्नुवन्ति ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - योगाभ्यासाशिवाय बुद्धी वाढत नाही व बुद्धीशिवाय धन व विद्येची सिद्धी होत नाही व विद्या, पुरुषार्थ आणि न्यायाशिवाय प्रजेचे पालन होऊ शकत नाही. ॥ ४ ॥