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ऋ॒तस्य॒ हि शु॒रुधः॒ सन्ति॑ पू॒र्वीर्ऋ॒तस्य॑ धी॒तिर्वृ॑जि॒नानि॑ हन्ति। ऋ॒तस्य॒ श्लोको॑ बधि॒रा त॑तर्द॒ कर्णा॑ बुधा॒नः शु॒चमा॑न आ॒योः ॥८॥

English Transliteration

ṛtasya hi śurudhaḥ santi pūrvīr ṛtasya dhītir vṛjināni hanti | ṛtasya śloko badhirā tatarda karṇā budhānaḥ śucamāna āyoḥ ||

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Pad Path

ऋ॒तस्य॑। हि। शु॒रुधः॑। सन्ति॑। पू॒र्वीः। ऋ॒तस्य॑। धी॒तिः। वृ॒जि॒नानि॑। ह॒न्ति॒। ऋ॒तस्य॑। श्लोकः॑। ब॒धि॒रा। त॒त॒र्द॒। कर्णा॑। बु॒धा॒नः। शु॒चमा॑नः। आ॒योः ॥८॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:23» Mantra:8 | Ashtak:3» Adhyay:6» Varga:10» Mantra:3 | Mandal:4» Anuvak:3» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब सत्याचरणोत्तमता विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥८॥

Word-Meaning: - हे राजन् ! जिस (ऋतस्य) सत्य आचार की (पूर्वीः) प्राचीन (शुरुधः) शीघ्र रोकनेवाली अपनी सेना (सन्ति) हैं जिस (ऋतस्य) सत्य की (धीतिः) धारणा करनेवाली बुद्धि (वृजिनानि) बलों को प्राप्त होकर शत्रुओं का (हन्ति) नाश करती है और जिसे (ऋतस्य) सत्य की (श्लोकः) वाणी (बधिरा) बधिर (कर्णा) कर्णों का (ततर्द) नाश करती है और जो अन्य जनों को (बुधानः) जनाता और (शुचमानः) पवित्र होकर पवित्र करता हुआ (आयोः) जीवन के उपायों का उपदेश देता है, उसका (हि) जिससे गुरु के सदृश सत्कार करो ॥८॥
Connotation: - हे अध्यापक वा राजन् ! जो जितेन्द्रिय दुष्ट आचार के रोकने और सत्य के प्रचार करनेवाले सत्यवाणीयुक्त और बधिर के सदृश वर्त्तमान अज्ञ पुरुषों को बोध देते हुए ब्रह्मचर्य्य आदि उपदेश से अधिक अवस्थावाले करते हुए क्लेश और शत्रुओं के नाश करनेवाले होवें, वे ही अपने आत्मा के सदृश आदर करने योग्य होवें ॥८॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ सत्याचरणोत्तमताविषयमाह ॥

Anvay:

हे राजन् ! यस्यर्त्तस्य सत्याचारस्य पूर्वीः शुरुधः सन्ति यस्यर्त्तस्य धीतिर्वृजिनानि प्राप्य शत्रून् हन्ति यस्यर्त्तस्य श्लोको बधिरा कर्णा ततर्द योऽन्यान् बुधानः शुचमान आयोर्जीवनस्योपायानुपदिशति तं हि गुरुवत् सत्कुर्य्याः ॥८॥

Word-Meaning: - (ऋतस्य) सत्यस्य (हि) यतः (शुरुधः) याः शु सद्यो रुन्धन्ति ताः स्वसेनाः। शुरुध इति पदनामसु पठितम्। (निघं०४.३) (सन्ति) (पूर्वीः) प्राचीनाः (ऋतस्य) यथार्थस्य (धीतिः) धारणावती प्रज्ञा (वृजिनानि) बलानि। वृजिनमिति बलनामसु पठितम्। (निघं०२.९) (हन्ति) (ऋतस्य) सत्यस्य (श्लोकः) वाक्। श्लोक इति वाङ्नामसु पठितम्। (निघं०१.११) (बधिरा) बधिराणि (ततर्द) हिनस्ति (कर्णा) कर्णानि (बुधानः) बोधयन् (शुचमानः) पवित्रः पवित्रयन् (आयोः) जीवनस्य ॥८॥
Connotation: - हे अध्यापक राजन् वा ! ये जितेन्द्रिया दुष्टाचारस्य निरोधकाः सत्यस्य प्रचारकाः सत्यवाचो बधिरवद्वर्त्तमानाज्ञान् बोधयन्तो ब्रह्मचर्य्याद्युपदेशेन दीर्घायुषः सम्पादयन्तः क्लेशानां शत्रूणाञ्च हन्तारः स्युस्त एव स्वात्मवन्माननीयाः स्युः ॥८॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे अध्यापक किंवा राजा! जे जितेन्द्रिय, दुष्ट आचरण रोखणारे, सत्याचा प्रचार करणारे, सत्य बोलणारे, बद्ध अज्ञानी लोकांना बोध करविणारे, ब्रह्मचर्याच्या उपदेशाने दीर्घायुषी करणारे. क्लेश व शत्रूंचा नाश करणारे, असतात तेच आपल्या आत्म्याप्रमाणे आदर करण्यायोग्य असतात. ॥ ८ ॥