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विश्वा॒ रोधां॑सि प्र॒वत॑श्च पू॒र्वीर्द्यौर्ऋ॒ष्वाज्जनि॑मन्नेजत॒ क्षाः। आ मा॒तरा॒ भर॑ति शु॒ष्म्या गोर्नृ॒वत्परि॑ज्मन्नोनुवन्त॒ वाताः॑ ॥४॥

English Transliteration

viśvā rodhāṁsi pravataś ca pūrvīr dyaur ṛṣvāj janiman rejata kṣāḥ | ā mātarā bharati śuṣmy ā gor nṛvat parijman nonuvanta vātāḥ ||

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Pad Path

विश्वा॑। रोधां॑सि। प्र॒ऽवतः॑। च॒। पू॒र्वीः। द्यौः। ऋ॒ष्वात्। जनि॑मन्। रे॒ज॒त॒। क्षाः। आ। मा॒तरा॑। भर॑ति। शु॒ष्मी। आ। गोः। नृ॒ऽवत्। परि॑ऽज्मन्। नो॒नु॒व॒न्त॒। वाताः॑ ॥४॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:22» Mantra:4 | Ashtak:3» Adhyay:6» Varga:7» Mantra:4 | Mandal:4» Anuvak:3» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब पृथिवी के धारण और भ्रमणविषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जो (ऋष्वात्) बड़े प्रकृतिरूप कारण से (जनिमन्) उत्पत्ति में प्रकट हुई (पूर्वीः) प्राचीनकाल से सिद्ध क्रियाओं को (द्यौः) बिजुली और (क्षाः) पृथिवी (आ, भरति) अच्छे प्रकार धारण करती है (च) और (प्रवतः) नीचे के स्थल में वर्त्तमान (विश्वा) सम्पूर्ण प्रजाओं तथा (रोधांसि) रुकावटों को (नृवत्) मनुष्यों के सदृश (आ) अच्छे प्रकार धारण करती है और जो (शुष्मी) बलवान् अग्नि (गोः) पृथिवी के सम्बन्ध में (मातरा) माता और पितारूप राजा और प्रजाजन तथा अन्तरिक्ष और पृथिवी को मनुष्यों के सदृश (रेजत) कम्पाता है, जहाँ (परिज्मन्) सब ओर से व्याप्त अन्तरिक्ष वा विस्तृत भूमि में (वाताः) पवन (नोनुवन्त) अत्यन्त शब्द करते हैं, उनको आप लोग जानो ॥४॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जो प्रकृतिरूप कारण से उत्पन्न हुआ बड़ा अग्नि सम्पूर्ण भूगोलों का आकर्षण करता है, माता और पिता के सदृश सब का पालन करता और अन्तरिक्ष में घुमाता है, उसको जान के कार्य्य सिद्ध करो ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ पृथिवीधारणभ्रमणविषयमाह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! या ऋष्वाज्जनिमन् प्रादुर्भूता पूर्वीर्द्यौः क्षा आ भरति प्रवतश्च विश्वा रोधांसि नृवदाऽऽभरति यश्शुष्मी गोर्मातरा द्यावाभूमी नृवद्रेजत यत्र परिज्मन् वाता नोनुवन्त तान् यूयं विजानीत ॥४॥

Word-Meaning: - (विश्वा) सर्वाणि (रोधांसि) रोधनानि (प्रवतः) अधस्ताद्वर्त्तमानान् (च) (पूर्वीः) प्राचीनाः सनातनीः (द्यौः) विद्युत् (ऋष्वात्) महतः कारणात् (जनिमन्) जन्मनि प्रादुर्भावे (रेजत) कम्पयति (क्षाः) भूमयः (आ) (मातरा) मातापितृरूपौ राजप्रजाजनौ (भरति) धरति (शुष्मी) बलवान् (आ) (गोः) पृथिव्याः (नृवत्) मनुष्यवत् (परिज्मन्) सर्वतो व्याप्तेऽन्तरिक्षे विस्तृतायां भूमौ वा। ज्मेति पृथिवीनामसु पठितम्। (निघं०१.१) (नोनुवन्त) भृशं शब्दायन्ते (वाताः) वायवः ॥४॥
Connotation: - हे मनुष्या ! यः प्रकृतेर्जातो महानग्निः सर्वान् भूगोलान् रुणद्धि मातापितृवत् सर्वान् पालयत्यन्तरिक्षे भ्रामयति तं विज्ञायोपयुङ्ग्ध्वम् ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो! जो प्रकृतिरूप कारणाने उत्पन्न झालेला महान अग्नी संपूर्ण भूगोलाला आकर्षित करतो. माता-पित्याप्रमाणे सर्वांचे पालन करतो व (विद्युतरूपाने) अंतरिक्षात कंपन उत्पन्न करतो त्याला जाणून कार्य सिद्ध करा. ॥ ४ ॥