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वृषा॒ वृष॑न्धिं॒ चतु॑रश्रि॒मस्य॑न्नु॒ग्रो बा॒हुभ्यां॒ नृत॑मः॒ शची॑वान्। श्रि॒ये परु॑ष्णीमु॒षमा॑ण॒ ऊर्णां॒ यस्याः॒ पर्वा॑णि स॒ख्याय॑ वि॒व्ये ॥२॥

English Transliteration

vṛṣā vṛṣandhiṁ caturaśrim asyann ugro bāhubhyāṁ nṛtamaḥ śacīvān | śriye paruṣṇīm uṣamāṇa ūrṇāṁ yasyāḥ parvāṇi sakhyāya vivye ||

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Pad Path

वृषा॑। वृष॑न्धिम्। चतुः॑ऽअश्रिम्। अस्य॑न्। उ॒ग्रः। बा॒हुभ्या॑म्। नृऽत॑मः। शची॑ऽवान्। श्रि॒ये। परु॑ष्णीम्। उ॒षमा॑णः। ऊ॒र्णा॑म्। यस्याः॑। पर्वा॑णि। स॒ख्याय॑। वि॒व्ये ॥२॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:22» Mantra:2 | Ashtak:3» Adhyay:6» Varga:7» Mantra:2 | Mandal:4» Anuvak:3» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जो (वृषा) अत्यन्त बलवान् (वृषन्धिम्) बलिष्ठों के धारण करनेवाले (चतुरश्रिम्) चतुरङ्ग सेना को प्राप्त जन को (बाहुभ्याम्) भुजाओं से (अस्यन्) फेंकता हुआ (उग्रः) तेजस्वी (नृतमः) अतिशय नायक (शचीवान्) बहुत प्रजावाला (यस्याः) जिसके (पर्वाणि) पूर्ण पालन (श्रिये) लक्ष्मी के लिये समर्थ होते हैं उस (परुष्णीम्) विभागवती (ऊर्णाम्) ढाँपनेवाली दुर्बुद्धि को (उषमाणः) जलाता हुआ (सख्याय) मित्र होने के वा मित्र के कर्म्म के लिये (विव्ये) कामना करता है, वही हम लोगों का राजा होने को योग्य होवे ॥२॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जो बाहुबल से दुष्टों का तिरस्कार करता हुआ मनुष्यों के उत्तम गुणों से उत्तम और मित्र के सदृश प्रजाओं को पालता है, वही लक्ष्मीवान् प्रजावान् न्यायाधीश राजा होने के योग्य होता है ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यो वृषा वृषन्धिं चतुरश्रिं बाहुभ्यामस्यन्नुग्रो नृतमश्शचीवान् यस्याः पर्वाणि श्रिये प्रभवन्ति तां परुष्णीमूर्णामुषमाणः सन्त्सख्याय विव्ये स एवाऽस्माकं राजा भवितुमर्हेत् ॥२॥

Word-Meaning: - (वृषा) बलिष्ठः (वृषन्धिम्) बलिष्ठानां धारकम् (चतुरश्रिम्) चतुरङ्गिणीं सेनां प्राप्तम् (अस्यन्) प्रक्षिपन् (उग्रः) तेजस्वी (बाहुभ्याम्) भुजाभ्याम् (नृतमः) अतिशयेन नायकः श्रेष्ठः (शचीवान्) बहुप्रजावान् (श्रिये) लक्ष्म्यै (परुष्णीम्) विभागवतीम् (उषमाणः) दहन् (ऊर्णाम्) आच्छादिकाम् (यस्याः) (पर्वाणि) पूर्णानि पालनानि (सख्याय) मित्रस्य भावाय कर्म्मणे वा (विव्ये) कामयते ॥२॥
Connotation: - हे मनुष्या ! यो बाहुबलेन दुष्टाँस्तिरस्कुर्वन्नरोत्तमगुणैरुत्कृष्टो मित्रवत् प्रजाः पालयति स एव श्रीमान् प्रजावान् न्यायाधीशो राजा भवितुमर्हति ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो ! जो बाहुबलाने दुष्टांचा तिरस्कार करतो व माणसांना उत्तमात उत्तम गुणांनी युक्त करतो, मित्राप्रमाणे प्रजेचे पालन करतो तोच लक्ष्मीवान, प्रजावान, न्यायाधीश, राजा होण्यायोग्य असतो. ॥ २ ॥