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अ॒र्य॒मणं॒ वरु॑णं मि॒त्रमे॑षा॒मिन्द्रा॒विष्णू॑ म॒रुतो॑ अ॒श्विनो॒त। स्वश्वो॑ अग्ने सु॒रथः॑ सु॒राधा॒ एदु॑ वह सुह॒विषे॒ जना॑य ॥४॥

English Transliteration

aryamaṇaṁ varuṇam mitram eṣām indrāviṣṇū maruto aśvinota | svaśvo agne surathaḥ surādhā ed u vaha suhaviṣe janāya ||

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Pad Path

अ॒र्य॒मण॑म्। वरु॑णम्। मि॒त्रम्। ए॒षा॒म्। इन्द्रा॒विष्णू॒ इति॑। म॒रुतः॑। अ॒श्विना॑। उ॒त। सु॒ऽअश्वः॑। अ॒ग्ने॒। सु॒ऽरथः॑। सु॒ऽराधाः॑। आ। इत्। ऊ॒म् इति॑। व॒ह॒। सु॒ऽह॒विषे॑। जना॑य॥४॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:2» Mantra:4 | Ashtak:3» Adhyay:4» Varga:16» Mantra:4 | Mandal:4» Anuvak:1» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (अग्ने) विद्वन् पुरुष (सुराधाः) उत्तम धन से (स्वश्वः) उत्तम घोड़ों और (सुरथः) उत्तम वाहनों से युक्त आप (सुहविषे) उत्तम सामग्रीवाले (जनाय) मनुष्य के लिये (अर्यमणम्) न्याय के अधीश (वरुणम्) श्रेष्ठ गुणवाले (एषाम्) इनके (मित्रम्) मित्र (इन्द्राविष्णू) तथा बिजुली और सूत्रात्मा (मरुतः) पवन (उत) और (अश्विना) सूर्य्य और चन्द्रमा की (आ, वह) प्राप्ति कराइये (उ, इत्) और सभी सुख दीजिये ॥४॥
Connotation: - हे विद्वन् ! आप अग्नि और जलादि पदार्थों को उत्तम प्रकार जान के और कार्य्यों में संयुक्त कर प्रत्यक्ष करके अन्य जनों के लिये उपदेश दीजिये, जिससे कि सब लोग धन धान्य और सुखों से युक्त होवें ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे अग्ने ! सुराधाः स्वश्वः सुरथस्संस्त्वं सुहविषे जनायाऽर्यमणं वरुणमेषां मित्रमिन्द्राविष्णू मरुत उताऽश्विना आ वह उ सर्वानिदेव सुखय ॥४॥

Word-Meaning: - (अर्यमणम्) न्यायाधीशम् (वरुणम्) श्रेष्ठगुणम् (मित्रम्) सखायम् (एषाम्) (इन्द्राविष्णू) विद्युत्सूत्रात्मानौ (मरुतः) वायून् (अश्विना) सूर्य्याचन्द्रमसौ (उत) (स्वश्वः) सुष्ठु अश्वा यस्य सः (अग्ने) विद्वन् (सुरथः) प्रशस्तयानः (सुराधाः) शोभनं राधो धनं यस्य सः (आ) (इत्) (उ) (वह) (सुहविषे) सुसामग्रीकाय (जनाय) मनुष्याय ॥४॥
Connotation: - हे विद्वन् ! भवानग्निजलादिपदार्थान् यथावद्विदित्वा कार्येषु सम्प्रयुज्य प्रत्यक्षीकृत्याऽन्यानुपदिश। येन सर्वे धनधान्यसुखयुक्ताः स्युः ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे विद्वाना! तू अग्नी व जल इत्यादी पदार्थांना उत्तम प्रकारे जाणून व कार्यात संयुक्त करून, प्रत्यक्ष कार्य करून इतर लोकांना उपदेश दे, ज्यामुळे सर्व लोक धनधान्य व सुख यांनी युक्त व्हावेत. ॥ ४ ॥