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अक॑र्म ते॒ स्वप॑सो अभूम ऋ॒तम॑वस्रन्नु॒षसो॑ विभा॒तीः। अनू॑नम॒ग्निं पु॑रु॒धा सु॑श्च॒न्द्रं दे॒वस्य॒ मर्मृ॑जत॒श्चारु॒ चक्षुः॑ ॥१९॥

English Transliteration

akarma te svapaso abhūma ṛtam avasrann uṣaso vibhātīḥ | anūnam agnim purudhā suścandraṁ devasya marmṛjataś cāru cakṣuḥ ||

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Pad Path

अक॑र्म। ते॒। सु॒ऽअप॑सः। अ॒भू॒म॒। ऋ॒तम्। अ॒व॒स्र॒न्। उ॒षसः॑। वि॒भा॒तीः। अनू॑नम्। अ॒ग्निम्। पु॒रु॒धा। सु॒ऽच॒न्द्रम्। दे॒वस्य॑। मर्मृ॑जतः। चारु॑। चक्षुः॑॥१९॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:2» Mantra:19 | Ashtak:3» Adhyay:4» Varga:19» Mantra:4 | Mandal:4» Anuvak:1» Mantra:19


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे राजन् ! जैसे (विभातीः) प्रकाश करती हुई (उषसः) प्रभातवेलाओं को (अनूनम्) और बहुत (सुश्चन्द्रम्) सुन्दर सुवर्ण जिससे होता उसको (मर्मृजतः) अत्यन्त शोधते हुए (देवस्य) कामना करनेवाले के (चारु) सुन्दर (चक्षुः) नेत्र (अग्निम्) और अग्नि को (पुरुधा) बहुत प्रकारों से (अवस्रन्) वसते हैं, वैसे ही (ऋतम्) सत्य की सेवा करते और (स्वपसः) उत्तम धर्म-सम्बन्धी कर्म करते हुए हम लोग अत्यन्त शुद्धता तथा कामना करते हुए के हित को (अकर्म) करें और (ते) आपके मित्र (अभूम) होवें ॥१९॥
Connotation: - हे राजन् ! जैसे सूर्य्य से उत्पन्न प्रातःकाल सब को शोभित करता है, वैसे ही ब्रह्मचर्य्य से हुए विद्वान् हम लोग आपकी आज्ञानुकूल जैसे वर्ते, वैसे ही आप हम लोगों का हित निरन्तर करो और सब हम लोग परस्पर मेल करके और अन्याय दूर करके धर्मसम्बन्धी कर्मों को प्रवृत्त करें ॥१९॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे राजन् ! यथा विभातीरुषसोऽनूनं सुश्चन्द्रम्मर्मृजतो देवस्य चारु चक्षुरग्निं पुरुधावस्रन् तथैवर्त्तं सेवमाना स्वपसो वयं ते मर्मृजतो देवस्य हितमकर्म ते सखायोऽभूम ॥१९॥

Word-Meaning: - (अकर्म) कुर्याम (ते) तव (स्वपसः) सुष्ठ्वपो धर्म्यं कर्म कुर्वाणाः (अभूम) भवेम (ऋतम्) सत्यम् (अवस्रन्) वसन्ति (उषसः) प्रभातवेलाः (विभातीः) प्रकाशयन्त्यः (अनूनम्) पुष्कलम् (अग्निम्) (पुरुधा) बहुप्रकारैः (सुश्चन्द्रम्) शोभनं चन्द्रं हिरण्यं यस्मात्तम् (देवस्य) कामयमानस्य (मर्मृजतः) भृशं शोधयतः (चारु) सुन्दरम् (चक्षुः) नेत्रम् ॥१९॥
Connotation: - हे राजन् ! यथा सूर्य्यादुत्पन्नोषा सर्वान् सुशोभितान् करोति तथैव ब्रह्मचर्य्येण जाता विद्वांसो वयं तवाऽऽज्ञायां यथा वर्त्तेमहि तथैव भवानस्माकं हितं सततं करोतु सर्वे वयं मिलित्वाऽन्यायं निवर्त्य धर्म्याणि कर्माणि प्रवर्त्तयेम ॥१९॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे राजा ! जशी सूर्यापासून उत्पन्न झालेली उषा सर्वांना सुशोभित करते, तसेच आम्ही ब्रह्मचारी विद्वान जसे वागतो तसेच तुम्ही आमचे निरंतर हित करा. आपण सर्वांनी मिळून अन्याय दूर करावा व धर्माचे कार्य करावे ॥ १९ ॥