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आ यू॒थेव॑ क्षु॒मति॑ प॒श्वो अ॑ख्यद्दे॒वानां॒ यज्जनि॒मान्त्यु॑ग्र। मर्ता॑नां चिदु॒र्वशी॑रकृप्रन्वृ॒धे चि॑द॒र्य उप॑रस्या॒योः ॥१८॥

English Transliteration

ā yūtheva kṣumati paśvo akhyad devānāṁ yaj janimānty ugra | martānāṁ cid urvaśīr akṛpran vṛdhe cid arya uparasyāyoḥ ||

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Pad Path

आ। यू॒थाऽइ॑व। क्षु॒ऽमति॑। प॒श्वः। अ॒ख्य॒त्। दे॒वाना॑म्। यत्। जनि॑म। अन्ति॑। उ॒ग्र। मर्ता॑नाम्। चि॒त्। उ॒र्वशीः॑। अ॒कृ॒प्र॒न्। वृ॒धे। चि॒त्। अ॒र्यः। उप॑रस्य। आ॒योः॥१८॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:2» Mantra:18 | Ashtak:3» Adhyay:4» Varga:19» Mantra:3 | Mandal:4» Anuvak:1» Mantra:18


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब राजा के विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (उग्र) तेजस्वी राजन् ! आप (देवानाम्) विद्वान् (मर्त्तानाम्) मनुष्यों के (अन्ति) समीप में (यत्) जिन (जनिम) जन्मों को (आ, अख्यत्) सब ओर से प्रसिद्ध करते वा (क्षुमति) बहुत अन्न जिसमें विद्यमान उसमें (यूथेव) सेनाजनों के सदृश प्रसिद्ध करते हैं (अर्य्यः) और जैसे स्वामी (चित्) वैसे (उपरस्य) मेघ और (आयोः) जीवन प्राप्त करानेवाले (पश्वः) पशु की (चित्) भी (वृधे) वृद्धि के लिये (उर्वशीः) बहुत व्याप्त होनेवाली क्रियाओं की विद्वान् लोग (अकृप्रन्) कल्पना करते हैं ॥१८॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो मनुष्यों के मध्य में राजा का जन्म वह बड़े पुण्य से उत्पन्न हुआ ऐसा जानना चाहिये। जो राजा विद्यमान न हो तो कोई भी स्वस्थता को नहीं प्राप्त हो और जैसे मेघ के समीप से सब का जीवन और वृद्धि होती है, वैसे ही राजा के समीप से सब प्रजा की वृद्धि और जीवन होता है ॥१८॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ राज्ञो विषयमाह ॥

Anvay:

हे उग्र राजन् ! भवान् देवानां मर्त्तानां चान्ति यज्जनिमाऽऽख्यत् क्षुमति यूथेवाऽऽख्यत्। अर्य्यश्चिदिवोपरस्यायोः पश्वश्चिद् वृध उर्वशीर्देवा अकृप्रन् ॥१८॥

Word-Meaning: - (आ) समन्तात् (यूथेव) सैन्यानीव (क्षुमति) बहु क्ष्वन्नं विद्यते यस्मिंस्तस्मिन् (पश्वः) पशोः (अख्यत्) प्रख्याति (देवानाम्) विदुषाम् (यत्) यानि (जनिम) जन्मानि (अन्ति) समीपे (उग्र) तेजस्विन् (मर्त्तानाम्) मनुष्याणाम् (चित्) अपि (उर्वशीः) बहुव्यापिकाः। उर्वशीति पदनामसु पठितम्। (निघं०४.२) (अकृप्रन्) कल्पन्ते (वृधे) वर्द्धनाय (चित्) इव (अर्य्यः) स्वामी (उपरस्य) मेघस्य (आयोः) जीवनस्य प्रापकस्य ॥१८॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। यन्मनुष्याणां मध्ये राजजन्म तन्महापुण्यजमिति वेद्यम्। यदि राजा न स्यात्तर्हि कोऽपि स्वास्थ्यं न प्राप्नुयाद् यथा मेघस्य सकाशात् सर्वेषां जीवनवर्धने भवतस्तथैव राज्ञः सर्वस्याः प्रजायाः वृद्धिजीवने भवतः ॥१८॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. माणसांमध्ये राजाचा जन्म अत्यंत पुण्याने मिळतो, असे समजले पाहिजे. जर राजा विद्यमान नसेल तर कोणीही स्वस्थ राहू शकत नाही. जशी मेघांमुळे सर्वांच्या जीवनाची वृद्धी होते तसेच राजामुळे सर्व प्रजेच्या जीवनाची उन्नती होते. ॥ १८ ॥