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यो मर्त्ये॑ष्व॒मृत॑ ऋ॒तावा॑ दे॒वो दे॒वेष्व॑र॒तिर्नि॒धायि॑। होता॒ यजि॑ष्ठो म॒ह्ना शु॒चध्यै॑ ह॒व्यैर॒ग्निर्मनु॑ष ईर॒यध्यै॑ ॥१॥

English Transliteration

yo martyeṣv amṛta ṛtāvā devo deveṣv aratir nidhāyi | hotā yajiṣṭho mahnā śucadhyai havyair agnir manuṣa īrayadhyai ||

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Pad Path

यः। मर्त्येषु। अ॒मृतः॑। ऋ॒तऽवा॑। दे॒वः। दे॒वेषु॑। अ॒र॒तिः। नि॒ऽधायि॑। होता॑। यजि॑ष्ठः। म॒ह्ना। शु॒चध्यै॑। ह॒व्यैः। अ॒ग्निः। मनु॑षः। ई॒र॒यध्यै॑॥१॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:2» Mantra:1 | Ashtak:3» Adhyay:4» Varga:16» Mantra:1 | Mandal:4» Anuvak:1» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब बीस ऋचावाले दूसरे सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में यथार्थ माननेवाले पुरुषों के कृत्य को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (यः) जो (अग्निः) ईश्वर पावक अग्नि वा, बिजुली के सदृश (मर्त्येषु) मरणधर्म वालों में (अमृतः) मृत्युधर्म से रहित (ऋतावा) सत्यस्वरूप (देवेषु) उत्तम पदार्थों वा विद्वानों में (देवः) उत्तम गुण, कर्म और स्वभाववाला सुन्दर (अरतिः) सर्वस्थान में प्राप्त (होता) देनेवाला (मह्ना) महत्त्व से (यजिष्ठः) पूजा करने योग्य (हव्यैः) देने के योग्यों के सहित (मनुषः) मनुष्यों को (ईरयध्यै) प्रेरणा करने को (शुचध्यै) पवित्र करने को विद्यमान वह हृदय में (निधायि) धारण किया जाता है ॥१॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जो जगदीश्वर उत्पत्ति और नाश आदि गुणरहित होने से दिव्यस्वरूप शुद्ध और पवित्र है, उसका प्रेरणा और पवित्रता से भजन करो ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथाप्तजनकृत्यमाह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! योऽग्निर्विद्युदिव मर्त्येष्वमृतः ऋतावा देवेषु देवोऽरतिर्होता मह्ना यजिष्ठो हव्यैस्सहितो मनुष ईरयध्यै शुचध्यै स हृदि निधायि ॥१॥

Word-Meaning: - (यः) (मर्त्येषु) मरणधर्मेषु (अमृतः) मृत्युधर्मरहितः (ऋतावा) सत्यस्वरूपः (देवः) दिव्यगुणकर्मस्वभावः कमनीयः (देवेषु) दिव्येषु पदार्थेषु विद्वत्सु वा (अरतिः) सर्वत्र प्राप्तः (निधायि) निधीयते (होता) दाता (यजिष्ठः) पूजितुमर्हः (मह्ना) महत्त्वेन (शुचध्यै) शोचितुं पवित्रीकर्त्तुम् (हव्यैः) होतुं दातुमर्हैः (अग्निः) पावक इव (मनुषः) मानवान् (ईरयध्यै) प्रेरितुम् ॥१॥
Connotation: - हे मनुष्या ! यो जगदीश्वर उत्पत्तिनाशादिगुणरहितत्वेन दिव्यस्वरूपः शुद्धः पवित्रोऽस्ति तं प्रेरणपवित्रताभ्यां भजत ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात राजा, प्रजा व आप्त (विद्वान) पुरुषांच्या कृत्याचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - हे माणसांनो ! जो जगदीश्वर उत्पत्ती व नाश इत्यादी गुणांनी रहित असल्यामुळे दिव्यस्वरूप शुद्ध व पवित्र आहे, त्याचे प्रेरणेने व पवित्रतेने भजन करा. ॥ १ ॥