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अक्षो॑दय॒च्छव॑सा॒ क्षाम॑ बु॒ध्नं वार्ण वात॒स्तवि॑षीभि॒रिन्द्रः॑। दृ॒ळ्हान्यौ॑भ्नादु॒शमा॑न॒ ओजोऽवा॑भिनत्क॒कुभः॒ पर्व॑तानाम् ॥४॥

English Transliteration

akṣodayac chavasā kṣāma budhnaṁ vār ṇa vātas taviṣībhir indraḥ | dṛḻhāny aubhnād uśamāna ojo vābhinat kakubhaḥ parvatānām ||

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Pad Path

अक्षो॑दयत्। शव॑सा। क्षाम॑। बु॒ध्नम्। वाः। न। वातः॑। तवि॑षीभिः। इन्द्रः॑। दृ॒ळ्हानि॑। औ॒भ्ना॒त्। उ॒शमा॑नः। ओजः॑। अव॑। अ॒भि॒न॒त्। क॒कुभः॑। पर्व॑तानाम् ॥४॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:19» Mantra:4 | Ashtak:3» Adhyay:6» Varga:1» Mantra:4 | Mandal:4» Anuvak:2» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब मेघदृष्टान्त से राजसेनाविषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जो (तविषीभिः) बल से युक्त सेनाओं के साथ (इन्द्रः) दुष्ट पुरुषों का नाश करनेवाला (शवसा) बल से (वातः) वायु (क्षाम) सहनयुक्त (बुध्नम्) अन्तरिक्ष और (वाः) उदक को जैसे (न) वैसे (दृळ्हानि) पुष्ट शत्रुसैन्य-दलों को (अक्षोदयत्) सञ्चूर्णित करता है तथा (ओजः) पराक्रम की (उशमानः) कामना करता हुआ (औभ्नात्) मृदुता करता है (पर्वतानाम्) मेघों के शिखरों के सदृश (ककुभः) दिशाओं और शत्रुओं को (अव, अभिनत्) तोड़ता है, उसीको अपना राजा करो ॥४॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जैसे वायु अग्नि से सूक्ष्म किये हुए जल को अन्तरिक्ष में पहुँचा और वर्षा कर संसार को आनन्द देता है, वैसे ही सामग्री, विद्या और सेना के सहित राजा दुष्टों को न्यून करके दण्ड और उपदेश से दुष्टों का नाश कर और सज्जनों को सिद्ध करके प्रजाओं को निरन्तर सुख दीजिये ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ मेघदृष्टान्तेन राजसेनाविषयमाह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यस्तविषीभिस्सहेन्द्रश्शवसा वातः क्षाम बुध्नं वार्ण दृळ्हानि शत्रुसैन्यान्यक्षोदयदोज उशमान औभ्नात् पर्वतानां शिखराणीव ककुभः शत्रूनवाभिनत् तमेव स्वकीयं राजानङ्कुरुत ॥४॥

Word-Meaning: - (अक्षोदयत्) सञ्चूर्णयति (शवसा) बलेन (क्षाम) क्षान्तम् (बुध्नम्) अन्तरिक्षम् (वाः) उदकम् (न) इव (वातः) वायुः (तविषीभिः) बलयुक्ताभिस्सेनाभिः (इन्द्रः) दुष्टानां विदारकः (दृळ्हानि) पुष्टानि (औभ्नात्) मृद्नाति (उशमानः) कामयमानः (ओजः) पराक्रमम् (अव) (अभिनत्) भिनत्ति (ककुभः) दिशाः (पर्वतानाम्) मेघानाम् ॥४॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः । यथा वायुरग्निना सूक्ष्मीकृतञ्जलमन्तरिक्षन्नीत्वा वर्षयित्वा जगदानन्दयति तथैव ससामग्रीविद्यासेनो राजा दुष्टान् सूक्ष्मीकृत्य दण्डोपदेशाभ्यां दुष्टान् भित्त्वा सज्जनान् सम्पाद्य प्रजाः सततं सुखयेत् ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसा वायू अग्नीद्वारे सूक्ष्म केलेले जल अंतरिक्षात पोचवितो व वृष्टी करून जगाला आनंद देतो, तसेच सामग्री, विद्या व सेनेसहित राजाने दुष्टांना दंड व उपदेश करून त्यांचा नाश करून सज्जनांना दिलासा द्यावा व प्रजेला निरंतर सुख द्यावे. ॥ ४ ॥