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अ॒यं वृत॑श्चातयते समी॒चीर्य आ॒जिषु॑ म॒घवा॑ शृ॒ण्व एकः॑। अ॒यं वाजं॑ भरति॒ यं स॒नोत्य॒स्य प्रि॒यासः॑ स॒ख्ये स्या॑म ॥९॥

English Transliteration

ayaṁ vṛtaś cātayate samīcīr ya ājiṣu maghavā śṛṇva ekaḥ | ayaṁ vājam bharati yaṁ sanoty asya priyāsaḥ sakhye syāma ||

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Pad Path

अ॒यम्। वृतः॑। चा॒त॒य॒ते॒। स॒म्ऽई॒चीः॒। यः। आ॒जिषु॑। म॒घऽवा॑। शृ॒ण्वे। एकः॑। अ॒यम्। वाज॑म्। भ॒र॒ति॒। यम्। स॒नोति॑। अ॒स्य। प्रि॒यासः॑। स॒ख्ये। स्या॒म॒ ॥९॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:17» Mantra:9 | Ashtak:3» Adhyay:5» Varga:22» Mantra:4 | Mandal:4» Anuvak:2» Mantra:9


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब राजा को अमात्य आदि भृत्य कैसे रखने चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे राजन् ! (यः) जो (अयम्) यह राजा (वृतः) स्वीकार किया हुआ बोधरहितों को (चातयते) विज्ञान करता है और जो (मघवा) बहुत धनरूप ऐश्वर्य्य से युक्त (एकः) अकेला अर्थात् सहायरहित (आजिषु) संग्रामों में (समीचीः) शिक्षाओं को प्राप्त होनेवाली सेनाओं का (भरति) पोषण करता है (अयम्) और यह (वाजम्) विज्ञान को पुष्ट करता है (यम्) जिसको यथार्थवक्ता पुरुष प्राप्त कर (सनोति) संपन्न करता है, जिसको मैं (शृण्वे) सुनता हूँ (अस्य) इसके (सख्ये) मित्रकर्म्म में हम लोग (प्रियासः) प्रिय (स्याम) होवें ॥९॥
Connotation: - हे राजन् ! जो सेनाओं को शिक्षा दिलाता है, विशेष करके युद्ध के समय में उचित बात कहने से योद्धाजनों का उत्साह बढ़ाता है और जो जन सम्मुख आपके दोषों को कहते हैं, उनकी शिक्षा में स्थित होकर, उन्हीं जनों में मित्रता करके सम्पूर्ण कार्य्यों को सिद्ध करो ॥९॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ राज्ञा कीदृशा अमात्यादयो भृत्या संरक्षणीया इत्याह ॥

Anvay:

हे राजन् ! योऽयं वृतः सन्नबुद्धाञ्चातयते यो मघवैक आजिषु समीचीर्भरति। अयं वाजं भरति यमाप्तः सनोति यमहं शृण्वेऽस्य सख्ये वयं प्रियासः स्याम ॥९॥

Word-Meaning: - (अयम्) राजा (वृतः) (चातयते) विज्ञापयति। चततीति गतिकर्म्मा । (निघं०२.१४)। (समीचीः) याः सम्यगञ्चन्ति शिक्षाः प्राप्नुवन्ति ताः सेनाः (यः) (आजिषु) सङ्ग्रामेषु (मघवा) बहुधनैश्वर्यः (शृण्वे) (एकः) असहायः (अयम्) (वाजम्) विज्ञानम् (भरति) (यम्) (सनोति) सम्पन्नं करोति (अस्य) (प्रियासः) (सख्ये) मित्रस्य कर्मणि (स्याम) भवेम ॥९॥
Connotation: - हे राजन् ! यः सेनाः शिक्षयति विशेषतो युद्धसमय उचितवक्तृत्वेन योद्धॄनुत्साहयति ये सम्मुखे भवद्दोषान् कथयन्ति तेषां शासने स्थित्वा तेष्वेव मैत्रीं भावयित्वा सर्वाणि कार्याणि साध्नुहि ॥९॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे राजा ! जो सेनेला प्रशिक्षण देतो व विशेष करून युद्धाच्या वेळी योग्य बोलून योद्ध्यांचा उत्साह वाढवितो व जे लोक समक्ष तुमचे दोष सांगतात. त्यांच्यापासून शिक्षण घेऊन त्याच लोकांबरोबर मैत्री करून संपूर्ण कार्य सिद्ध करा. ॥ ९ ॥