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ति॒ग्मा यद॒न्तर॒शनिः॒ पता॑ति॒ कस्मि॑ञ्चिच्छूर मुहु॒के जना॑नाम्। घो॒रा यद॑र्य॒ समृ॑ति॒र्भवा॒त्यध॑ स्मा नस्त॒न्वो॑ बोधि गो॒पाः ॥१७॥

English Transliteration

tigmā yad antar aśaniḥ patāti kasmiñ cic chūra muhuke janānām | ghorā yad arya samṛtir bhavāty adha smā nas tanvo bodhi gopāḥ ||

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Pad Path

ति॒ग्मा। यत्। अ॒न्तः। अ॒शनिः॑। पता॑ति। कस्मि॑न्। चि॒त्। शू॒र॒। मु॒हु॒के। जना॑नाम्। घो॒रा। यत्। अ॒र्य॒। सम्ऽऋ॑तिः। भवा॑ति। अध॑। स्म॒। नः॒। त॒न्वः॑। बो॒धि॒। गो॒पाः ॥१७॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:16» Mantra:17 | Ashtak:3» Adhyay:5» Varga:20» Mantra:2 | Mandal:4» Anuvak:2» Mantra:17


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब युद्ध की प्रवृत्ति में विजयता विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (शूर) वीर ! (अर्य्य) प्रशंसित (यत्) जो (घोरा) भयंकर (समृतिः) युद्ध (भवाति) होवे (अध) इसके अनन्तर (यत्) जो (तिग्मा) तीव्र (अशनिः) बिजुली (जनानाम्) मनुष्यों के (कस्मिंश्चित्) किसी (मुहुके) मोह के प्राप्त करानेवाले वारंवार करने योग्य संग्राम के (अन्तः) बीच (पताति) गिरे, उसमें (स्मा) ही (गोपाः) रक्षा करनेवाले हुए आप (नः) हम लोगों के (तन्वः) शरीरों की (बोधि) जानिये ॥१७॥
Connotation: - हे शूरवीरो ! जब बहुत शस्त्रों के संपातयुक्त युद्ध प्रवृत्त होवे, तब अपने और अपने सम्बन्धियों के शरीरों की रक्षा करने और शत्रुओं के नाश करने से विजयी हूजिये ॥१७॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ युद्धप्रवृत्तौ विजयताविषयमाह ॥

Anvay:

हे शूरार्य्य ! यद् घोरा समृतिर्भवात्यध यत्तिग्माऽशनिर्जनानां कस्मिश्चिन्मुहुकेऽन्तः पताति तत्र स्मा गोपाः सन्नस्तन्वो बोधि ॥१७॥

Word-Meaning: - (तिग्मा) तीव्रा (यत्) या (अन्तः) मध्ये (अशनिः) विद्युत् (पताति) पतेत् (कस्मिन्) (चित्) अपि (शूर) (मुहुके) मोहप्रापके मुहुर्मुहुः करणीये सङ्ग्रामे (जनानाम्) मनुष्याणाम् (घोरा) भयङ्करा (यत्) या (अर्य्य) प्रशंसित (समृतिः) युद्धम् (भवाति) भवेत् (अध) आनन्तर्य्ये (स्मा) एव। अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (नः) अस्माकम् (तन्वः) (बोधि) (गोपाः) रक्षकः ॥१७॥
Connotation: - हे शूरवीरा ! यदा बहुशस्त्रसम्पातं युद्धं प्रवर्त्तेत तदा स्वस्य स्वकीयानां च शरीररक्षणेन शत्रूणां हिंसनेन विजयिनो भवत ॥१७॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे शूरवीरांनो ! जेव्हा प्रभावी शस्त्रांनी प्रखर युद्ध सुरू होते तेव्हा आपले व आपल्या नातेवाईकांच्या शरीराचे रक्षण करून व शत्रूंचा नाश करून विजयी व्हा. ॥ १७ ॥