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तमिद्व॒ इन्द्रं॑ सु॒हवं॑ हुवेम॒ यस्ता च॒कार॒ नर्या॑ पु॒रूणि॑। यो माव॑ते जरि॒त्रे गध्यं॑ चिन्म॒क्षू वाजं॒ भर॑ति स्पा॒र्हरा॑धाः ॥१६॥

English Transliteration

tam id va indraṁ suhavaṁ huvema yas tā cakāra naryā purūṇi | yo māvate jaritre gadhyaṁ cin makṣū vājam bharati spārharādhāḥ ||

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Pad Path

तम्। इत्। वः॒। इन्द्र॑म्। सु॒ऽहव॑म्। हु॒वे॒म॒। यः। ता। च॒कार॑। नर्या॑। पु॒रूणि॑। यः। माऽव॑ते। ज॒रि॒त्रे। गध्य॑म्। चि॒त्। म॒क्षु। वाज॑म्। भर॑ति। स्पा॒र्हऽरा॑धाः ॥१६॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:16» Mantra:16 | Ashtak:3» Adhyay:5» Varga:20» Mantra:1 | Mandal:4» Anuvak:2» Mantra:16


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब राजा और प्रजाजनों की एक सम्मति होने के विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे प्रजाजनो ! (यः) जो (स्पार्हराधाः) इच्छा करने योग्य धनयुक्त पुरुष (मावते) मेरे सदृश (जरित्रे) विद्या की स्तुति करनेवाले के लिये (गध्यम्) ग्रहण करने योग्य (वाजम्) अन्न आदि ऐश्वर्य को (मक्षू) शीघ्र (भरति) धारण करता है (यः) (चित्) और जो (ता) उन (पुरूणि) बहुत (नर्य्या) मनुष्यों के लिये हितकारक सैन्य कामों को (चकार) करे (तम्) उस (सुहवम्) उत्तम प्रकार प्रशंसित (इन्द्रम्) अत्यन्त ऐश्वर्यवाले को (इत्) ही (वः) आप लोगों के लिये (हुवेम) हवन करें ॥१६॥
Connotation: - जो राजा और प्रजाजन एक सम्मति करके उत्तम गुण, कर्म्म और स्वभाव से युक्त राजा को स्वीकार करें तो पूर्ण सुख प्राप्त हो ॥१६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ राजप्रजाजनानामेकसम्मतिविषयमाह ॥

Anvay:

हे प्रजाजना ! यः स्पार्हराधा मावते जरित्रे गध्यं वाजं मक्षू भरति यश्चित् ता पुरूणि नर्य्या चकार तं सुहवमिन्द्रमिदेव वो हुवेम ॥१६॥

Word-Meaning: - (तम्) (इत्) एव (वः) युष्मभ्यम् (इन्द्रम्) परमैश्वर्य्यम् (सुहवम्) सुष्ठु प्रशंसितम् (हुवेम) (यः) (ता) तानि (चकार) कुर्य्यात् (नर्य्या) नृभ्यो हितानि (पुरूणि) बहूनि सैन्यानि (यः) (मावते) मत्सदृशाय (जरित्रे) विद्यास्तावकाय (गध्यम्) गृह्यम् (चित्) अपि (मक्षू) अत्र ऋचि तुनुघेति दीर्घः। (वाजम्) अन्नाद्यैश्वर्य्यम् (भरति) धरति (स्पार्हराधाः) स्पार्हं स्पृहणीयं राधो धनं यस्य सः ॥१६॥
Connotation: - यदि राजप्रजाजनैरेकां सम्मतिं कृत्वा शुभगुणकर्म्मस्वभावसम्पन्नो राजा स्वीक्रियते तर्हि पूर्णसुखं प्राप्येत ॥१६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - राजा व प्रजा यांनी सर्व संमतीने शुभ गुण, कर्म, स्वभावयुक्त राजाचा स्वीकार करून पूर्ण सुख प्राप्त करावे. ॥ १६ ॥