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सूर॑ उपा॒के त॒न्वं१॒॑ दधा॑नो॒ वि यत्ते॒ चेत्य॒मृत॑स्य॒ वर्पः॑। मृ॒गो न ह॒स्ती तवि॑षीमुषा॒णः सिं॒हो न भी॒म आयु॑धानि॒ बिभ्र॑त् ॥१४॥

English Transliteration

sūra upāke tanvaṁ dadhāno vi yat te cety amṛtasya varpaḥ | mṛgo na hastī taviṣīm uṣāṇaḥ siṁho na bhīma āyudhāni bibhrat ||

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Pad Path

सूरः॑। उ॒पा॒के। त॒न्व॑म्। दधा॑नः। वि। यत्। ते॒। चेति॑। अ॒मृत॑स्य। वर्पः॑। मृ॒गः। न। ह॒स्ती। तवि॑षीम्। उ॒षा॒णः। सिं॒हः। न। भी॒मः। आयु॑धानि। बिभ्र॑त् ॥१४॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:16» Mantra:14 | Ashtak:3» Adhyay:5» Varga:19» Mantra:4 | Mandal:4» Anuvak:2» Mantra:14


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब राजविषय में सेनायोग्य पुरुषों के रखने और उनके फल को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे राजन् ! (यत्) जो (उपाके) समीप में (सूरः) सूर्य्य के सदृश (तन्वम्) तेजस्वि शरीर को (दधानः) धारण करता हुआ (ते) तुम्हारा (अमृतस्य) नित्य वस्तु के (वर्पः) रूप और (मृगः) हरिण के (न) तुल्य वा वेगवान् (हस्ती) हाथी के तुल्य बलवान् वा (सिंहः) सिंह के (न) तुल्य (भीमः) भयङ्कर (आयुधानि) तलवार, भुशुण्डी, शतघ्न्यादि नामों से प्रसिद्ध आयुधों को (बिभ्रत्) धारण और शत्रुओं की (तविषीम्) बलयुक्त सेना का (उषाणः) दाह करता हुआ (वि, चेति) जनाया जाता है, उसका आप सदा सत्कार करके रक्खो ॥१४॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । हे राजन् ! जो लोग दीर्घ ब्रह्मचर्य से सूर्य्य के समान तेजस्वी रूपवान् और वेगवान् बलिष्ठ, सिंह के सदृश पराक्रमी, धनुर्वेद के जाननेवाले जन हों उनकी सेना से शत्रुओं को जीतकर सब स्थानों में उत्तम कीर्ति से विदित हूजिये ॥१४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ राजविषये सैन्यपुरुषरक्षणं तत्फलं चाह ॥

Anvay:

हे राजन् ! यद्य उपाके सूर इव तन्वं दधानस्तेऽमृतस्य वर्पो मृगो न वेगवान् हस्तीव बलिष्ठः सिंहो न भीम आयुधानि बिभ्रच्छत्रुतविषीमुषाणो वि चेति तं त्वं सदा सत्कृत्य रक्ष ॥१४॥

Word-Meaning: - (सूरः) सूर्य्य इव (उपाके) समीपे (तन्वम्) तेजस्विशरीरम् (दधानः) धरन् (वि) (यत्) यः (ते) तव (चेति) ज्ञाप्यते (अमृतस्य) नित्यस्य (वर्पः) रूपम् (मृगः) (न) इव (हस्ती) (तविषीम्) बलयुक्तां सेनाम् (उषाणः) दहन् (सिंहः) (न) इव (भीमः) (आयुधानि) असिभुशुण्डीशतघ्न्यादीनि (बिभ्रत्) धरन् ॥१४॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः । हे राजन् ! ये दीर्घब्रह्मचर्य्येण सूर्यवत्तेजस्विनो रूपवन्तो वेगवन्तो बलिष्ठाः सिंहवत्पराक्रमिणो धनुर्वेदविदो जनाः स्युस्तत्सेनया शत्रून् विजित्य सर्वत्र सत्कीर्त्या विदितो भव ॥१४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे राजा ! जे लोक दीर्घ ब्रह्मचर्याने सूर्याप्रमाणे तेजस्वी रूपवान, वेगवान व बलवान, सिंहाप्रमाणे पराक्रमी, धनुर्वेद जाणणारे लोक असतील तर त्यांच्या सेनेने शत्रूंना जिंकून सर्व स्थानी उत्तम कीर्ती पसरवावी. ॥ १४ ॥