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यासि॒ कुत्से॑न स॒रथ॑मव॒स्युस्तो॒दो वात॑स्य॒ हर्यो॒रीशा॑नः। ऋ॒ज्रा वाजं॒ न गध्यं॒ युयू॑षन्क॒विर्यदह॒न्पार्या॑य॒ भूषा॑त् ॥११॥

English Transliteration

yāsi kutsena saratham avasyus todo vātasya haryor īśānaḥ | ṛjrā vājaṁ na gadhyaṁ yuyūṣan kavir yad ahan pāryāya bhūṣāt ||

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Pad Path

यासि॑। कुत्से॑न। स॒ऽरथ॑म्। अ॒व॒स्युः। तो॒दः। वात॑स्य। हर्योः॑। ईशा॑नः। ऋ॒ज्रा। वाज॑म्। न। गध्य॑म्। युयू॑षन्। क॒विः। यत्। अह॑न्। पार्या॑य। भूषा॑त् ॥११॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:16» Mantra:11 | Ashtak:3» Adhyay:5» Varga:19» Mantra:1 | Mandal:4» Anuvak:2» Mantra:11


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर राजविषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे राजन् ! जिससे आप (अवस्युः) अपनी रक्षा की इच्छा करते हुए (तोदः) शत्रुओं के नाशकर्त्ता (वातस्य) पवन और (हर्य्योः) घोड़ों के (ईशानः) स्वामी होते हुए (सरथम्) रथ आदिकों के सहित सेना को (यासि) प्राप्त होते हो (ऋज्रा) और सरल गमनों को (गध्यम्) ग्रहण करने योग्य (वाजम्) वेग के (न) सदृश (युयूषन्) मिलाने की इच्छा करते हुए (कविः) श्रेष्ठ बुद्धियुक्त (कुत्सेन) निकृष्ट कर्म के सहित वर्त्तमान का (अहन्) नाश करता है (यत्) जो (पार्याय) पार होने के लिये (भूषात्) शोभित करे उसको प्राप्त होते हो, इससे राज्य करने को समर्थ हो सकते हो ॥११॥
Connotation: - जो लोग निन्दित कर्म्म और निन्दित जन के सङ्ग का त्याग करके सत्यन्याय से प्रजाओं का पालन करते हुए पुरुषार्थ करें, वे सब प्रकार से शोभित होवें ॥११॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुना राजविषयमाह ॥

Anvay:

हे राजन् ! यतस्त्वमवस्युस्तोदो वातस्य हर्योरीशानः सन् सरथं यासि ऋज्रा गध्यं वाजं न युयूषन् कविः सन् कुत्सेन सहितमहन् यद्यः पार्याय भूषात् तं प्राप्नोषि तस्माद्राज्यं कर्त्तुं शक्नोषि ॥११॥

Word-Meaning: - (यासि) गच्छसि (कुत्सेन) कुत्सितकर्मणा (सरथम्) रथादिभिः सहितं सैन्यम् (अवस्युः) आत्मनोऽवो रक्षणमिच्छुः (तोदः) शत्रूणां हन्ता (वातस्य) वायोः (हर्य्योः) अश्वयोः (ईशानः) स्वामी (ऋज्रा) ऋज्राणि (वाजम्) वेगम् (न) इव (गध्यम्) ग्रहीतव्यम्। अत्र वर्णव्यत्ययेन रेफलोपो हस्य धः। (युयूषन्) मिश्रयितुमिच्छन् (कविः) क्रान्तप्रज्ञः (यत्) यः (अहन्) हन्ति (पार्य्याय) पारभवाय (भूषात्) अलङ्कुर्यात् ॥११॥
Connotation: - ये कुत्सितानि कर्माणि निन्दितजनसङ्गं च विहाय सत्येन न्यायेन प्रजाः पालयन्तः पुरुषार्थयेयुस्ते सर्वतोऽलङ्कृताः स्युः ॥११॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे लोक निन्दित कर्म व निन्दित लोकांचा संग सोडून सत्य न्यायाने प्रजेचे पालन करत पुरुषार्थ करतात, ते सर्व प्रकारे सुशोभित होतात. ॥ ११ ॥