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अ॒यं यः सृञ्ज॑ये पु॒रो दै॑ववा॒ते स॑मि॒ध्यते॑। द्यु॒माँ अ॑मित्र॒दम्भ॑नः ॥४॥

English Transliteration

ayaṁ yaḥ sṛñjaye puro daivavāte samidhyate | dyumām̐ amitradambhanaḥ ||

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Pad Path

अ॒यम्। यः। सृञ्ज॑ये। पु॒रः। दै॒व॒ऽवा॒ते। स॒म्ऽइ॒ध्यते॑। द्यु॒ऽमान्। आ॒मि॒त्र॒ऽदम्भ॑नः ॥४॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:15» Mantra:4 | Ashtak:3» Adhyay:5» Varga:15» Mantra:4 | Mandal:4» Anuvak:2» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब राजविषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे राजन् ! (यः) जो (अयम्) यह (द्युमान्) बहुत विद्या के प्रकाश से युक्त (अमित्रदम्भनः) शत्रुओं का नाशकर्त्ता (पुरः) प्रथम (दैववाते) विद्वान् जनों के प्राप्तसुख में (सृञ्जये) पाये हुए शत्रुओं को जिसमें जीतता है, उस संग्राम में (समिध्यते) प्रकाशित होता है, वही आपके सत्कार करने योग्य है ॥४॥
Connotation: - हे राजन् ! जो लोग बड़े संग्राम में तेजस्वी, भयरहित, आगे चलनेवाले और शत्रुओं के नाशकर्त्ता नौकर हों, उनका ही आप पुत्र के सदृश पालन करो ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ राजविषयमाह ॥

Anvay:

हे राजन् ! योऽयं द्युमानमित्रदम्भनः पुरो दैववाते सृञ्जये समिध्यते स एव त्वया सत्कर्त्तव्यः ॥४॥

Word-Meaning: - (अयम्) (यः) (सृञ्जये) यः प्राप्ताञ्छत्रून् जयति तस्मिन् (पुरः) पुरस्तात् (दैववाते) देवानां प्राप्ते भवे (समिध्यते) प्रदीप्यते (द्युमान्) बहुविद्याप्रकाशयुक्तः (अमित्रदम्भनः) शत्रूणां हिंसकः ॥४॥
Connotation: - हे नृप ! ये महति सङ्ग्रामे तेजस्विनो निर्भयाः पुरोगामिनः शत्रुविदारका भृत्याः स्युस्तानेव भवान् पुत्रवत् पालयतु ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे राजा! जे लोक मोठ्या युद्धात तेजस्वी, निर्भय पुरोगामी व शत्रूंचे विनाशक सेवक असतील तर तुम्ही त्यांचे पुत्राप्रमाणे पालन करा. ॥ ४ ॥