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यच्चि॒द्धि ते॑ पुरुष॒त्रा य॑वि॒ष्ठाचि॑त्तिभिश्चकृ॒मा कच्चि॒दागः॑। कृ॒धीष्व१॒॑स्माँ अदि॑ते॒रना॑गा॒न्व्येनां॑सि शिश्रथो॒ विष्व॑गग्ने ॥४॥

English Transliteration

yac cid dhi te puruṣatrā yaviṣṭhācittibhiś cakṛmā kac cid āgaḥ | kṛdhī ṣv asmām̐ aditer anāgān vy enāṁsi śiśratho viṣvag agne ||

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Pad Path

यत्। चि॒त्। हि। ते॒। पु॒रु॒ष॒ऽत्रा। य॒वि॒ष्ठ॒। अचि॑त्तिऽभिः। च॒कृ॒म। कत्। चि॒त्। आगः॑। कृ॒धि। सु। अ॒स्मान्। अदि॑तेः। अना॑गान्। वि। एनां॑सि। शि॒श्र॒थः॒। विष्व॑क्। अ॒ग्ने॒ ॥४॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:12» Mantra:4 | Ashtak:3» Adhyay:5» Varga:12» Mantra:4 | Mandal:4» Anuvak:2» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (यविष्ठ) अत्यन्त यौवनावस्था को प्राप्त (अग्ने) विद्या और विनय से प्रकाशित राजन् ! (यत्) जो हम लोग (अचित्तिभिः) चेतनाभिन्नों से (ते) आपके (पुरुषत्रा) पुरुषों में (चित्) कुछ (आगः) अपराध को (चकृम) करें उन (अस्मान्) हम लोगों को (कत्, चित्) कभी (अनागान्) अपराध से रहित (कृधि) कीजिये जो-जो हम लोगों से (एनांसि) पाप होवें, उन-उन को भी (हि) निश्चय से (विष्वक्) सब प्रकार (वि, शिश्रथः) शिथिल वा उनका वियोग करो और (अदितेः) पृथिवी के (सु) उत्तम राज्य को करो ॥४॥
Connotation: - हे राजन् ! जो कदाचित् अज्ञान वा प्रमाद से हम लोग अपराध करें, उनको भी दण्ड के विना क्षमा न कीजिये और हम लोगों को उत्तम शिक्षा से धार्मिक करके पृथिवी के राज्य के अधिकारी करिये ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे यविष्ठाग्ने ! यद् ये वयमचित्तिभिस्ते पुरुषत्रा चिदागश्चकृम तानस्मान् कच्चिदनागान् कृधि। यानि यान्यस्मदेनांसि जायेरँस्तानि तानि चिद्धि विष्वग्विशिश्रथोऽदितेः सु राष्ट्रं कृधि ॥४॥

Word-Meaning: - (यत्) (चित्) अपि (हि) खलु (ते) तव (पुरुषत्रा) पुरुषेषु (यविष्ठ) अतिशयेन प्राप्तयौवन (अचित्तिभिः) अचेतनाभिः (चकृम) कुर्य्याम। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (कत्) कदा (चित्) (आगः) अपराधम् (कृधि) कुरु (सु) (अस्मान्) (अदितेः) पृथिव्याः (अनागान्) अनपराधान् (वि) (एनांसि) पापानि (शिश्रथः) शिथिलीकुरु वियोजय (विष्वक्) सर्वतः (अग्ने) विद्याविनयप्रकाशित राजन् ॥४॥
Connotation: - हे राजन् ! यदि कदाचिदज्ञानेन प्रमादेन वा वयमपराधं कुर्य्याम तानपि दण्डेन विना मा क्षमस्व। अस्मान् सुशिक्षया धार्मिकान् कृत्वा पृथिव्या राज्याधिकारिणः कुर्य्याः ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे राजा ! कदाचित अज्ञान किंवा प्रमादाने आम्ही अपराध केला तर त्यालाही दंड न देता क्षमा करू नकोस व आम्हाला उत्तम शिक्षणाने धार्मिक करून पृथ्वीच्या राज्याचे अधिकारी कर. ॥ ४ ॥