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विश्वे॑षा॒मदि॑तिर्य॒ज्ञिया॑नां॒ विश्वे॑षा॒मति॑थि॒र्मानु॑षाणाम्। अ॒ग्निर्दे॒वाना॒मव॑ आवृणा॒नः सु॑मृळी॒को भ॑वतु जा॒तवे॑दाः ॥२०॥

English Transliteration

viśveṣām aditir yajñiyānāṁ viśveṣām atithir mānuṣāṇām | agnir devānām ava āvṛṇānaḥ sumṛḻīko bhavatu jātavedāḥ ||

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Pad Path

विश्वे॑षाम्। अदि॑तिः। य॒ज्ञिया॑नाम्। विश्वे॑षाम्। अति॑थिः। मानु॑षाणाम्। अ॒ग्निः। दे॒वाना॑म्। अवः॑। आ॒ऽवृ॒णा॒नः। सु॒ऽमृ॒ळी॒कः। भ॒व॒तु॒। जा॒तऽवेदाः॑॥२०॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:1» Mantra:20 | Ashtak:3» Adhyay:4» Varga:15» Mantra:5 | Mandal:4» Anuvak:1» Mantra:20


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उक्त विषय को सूर्य के सम्बन्ध से भी कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे विद्वन् ! आप (विश्वेषाम्) सम्पूर्ण (यज्ञियानाम्) यज्ञों के अनुष्ठान करनेवालों के (अदितिः) अखण्डित अन्तरिक्ष के तुल्य (विश्वेषाम्) सम्पूर्ण (मानुषाणाम्) मनुष्यों में (अतिथिः) अभ्यागत के सदृश वर्त्तमान (देवानाम्) विद्वानों के (अग्निम्) अग्नि के सदृश (अवः) रक्षण को (आवृणानः) सब प्रकार स्वीकार करते हुए (जातवेदाः) उत्पन्न पदार्थों में विद्यमान हुए (सुमृळीकः) उत्तम प्रकार सुख करनेवाले (भवतु) हूजिये ॥२०॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जैसे यज्ञ के सुगन्धित धूम से शुद्ध हुआ अन्तरिक्ष पूर्णविद्यायुक्त, यथार्थवक्ता उपदेश देनेवाला पुरुष और सूर्य्य सुखदेनेवाले होते हैं, वैसे ही आप लोग सबों के लिये सुख देनेवाले हूजिये ॥२०॥ इस सूक्त में विद्वानों से जानने योग्य अग्नि वाणी सूर्य बिजुली आदिकों के गुण वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥२०॥ यह प्रथम सूक्त और पन्द्रहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनरुक्तं सूर्य्यसम्बन्धेनाप्याह ॥

Anvay:

हे विद्वन् ! भवान् विश्वेषां यज्ञियानामदितिरिव विश्वेषां मानुषाणामतिथिरिव देवानामग्निरिवाऽव आवृणानो जातवेदाः सुमृळीको भवतु ॥२०॥

Word-Meaning: - (विश्वेषाम्) सर्वेषाम् (अदितिः) अखण्डितमन्तरिक्षम् (यज्ञियानाम्) यज्ञानुष्ठानकर्त्तॄणाम् (विश्वेषाम्) (अतिथिः) अभ्यागत इव वर्त्तमानः (मानुषाणाम्) मानवानाम् (अग्निः) (देवानाम्) (अवः) रक्षणम् (आवृणानः) समन्तात् स्वीकुर्वन् (सुमृळीकः) सुष्ठु सुखकारकः (भवतु) (जातवेदाः) जातेषु पदार्थेषु विद्यमानः ॥२०॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! यथा सुगन्धधूमेन शोधितमन्तरिक्षं पूर्णविद्य आप्तोपदेष्टा सूर्य्यश्च सुखदा भवन्ति तथैव यूयं सर्वेभ्यः सुखप्रदा भवतेति ॥२०॥ अत्र विद्वद्वेद्याऽग्निवाणीसूर्यविद्युदादिगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥२०॥ इति प्रथमं सूक्तं पञ्चदशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जसे यज्ञाच्या सुगंधित धुराने शुद्ध झालेले अंतरिक्ष, पूर्ण विद्यायुक्त यथार्थवक्ता उपदेश देणारा व सूर्य, सुख देणारे असतात तसेच तुम्ही लोक सर्वांसाठी सुख देणारे व्हा ॥ २० ॥