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अच्छा॑ वोचेय शुशुचा॒नम॒ग्निं होता॑रं वि॒श्वभ॑रसं॒ यजि॑ष्ठम्। शुच्यूधो॑ अतृण॒न्न गवा॒मन्धो॒ न पू॒तं परि॑षिक्तमं॒शोः ॥१९॥

English Transliteration

acchā voceya śuśucānam agniṁ hotāraṁ viśvabharasaṁ yajiṣṭham | śucy ūdho atṛṇan na gavām andho na pūtam pariṣiktam aṁśoḥ ||

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Pad Path

अच्छ॑। वो॒चे॒य॒। शु॒शु॒चा॒नम्। अ॒ग्निम्। होता॑रम्। वि॒श्वऽभ॑रसम्। यजि॑ष्ठम्। शुचि॑। ऊधः॑। अ॒तृ॒ण॒त्। न। गवा॑म्। अन्धः॑। न। पू॒तम्। परि॑ऽसिक्तम्। अं॒शोः॥१९॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:1» Mantra:19 | Ashtak:3» Adhyay:4» Varga:15» Mantra:4 | Mandal:4» Anuvak:1» Mantra:19


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब बिजुली के विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जो (अंशोः) प्राप्त सूर्य्य के (परिषिक्तम्) सब ओर से गीले किये हुए (पूतम्) पवित्र वस्तु (शुचि) और पवित्र कर्म को (अन्धः) अन्न के (न) तुल्य वा (गवाम्) गौओं के (ऊधः) प्रभात समय के सदृश (न) नहीं (अतृणत्) हिंसा करता है, उस (यजिष्ठम्) अत्यन्त मिलाने (विश्वभरसम्) संसार के धारण करने और (होतारम्) देने और (शुशुचानम्) शुद्ध गुण, कर्म और स्वभाव करानेवाले (अग्निम्) बिजुलीरूप अग्नि का आप लोगों के प्रति मैं (अच्छ) उत्तम प्रकार (वोचेय) उपदेश दूँ ॥१९॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। मनुष्यों को चाहिये कि जैसे बिजुली समान रूप हुई सब की रक्षा करती है और विरूप होनेपर नाश करती, वह किरणों का नाश नहीं करती और अन्न के सदृश पालन करनेवाली होकर सब को चलाती है, ऐसा जानें ॥१९॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ विद्युद्विषयमाह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! योंऽशोः परिषिक्तं पूतं शुच्यन्धो न गवामूधो नाऽतृणत्तं यजिष्ठं विश्वभरसं होतारं शुशुचानमग्निं युष्मान् प्रत्यहमच्छ वोचेय ॥१९॥

Word-Meaning: - (अच्छ) सम्यक्। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (वोचेय) उपदिशेय (शुशुचानम्) शुद्धगुणकर्मस्वभावम् (अग्निम्) विद्युद्रूपम् (होतारम्) दातारम् (विश्वभरसम्) संसारस्य धारकम् (यजिष्ठम्) अतिशयेन सङ्गन्तारम् (शुचि) पवित्रं कर्म (ऊधः) प्रभातवेलेव (अतृणत्) हिनस्ति (न) निषेधे (गवाम्) (अन्धः) अन्नम् (न) इव (पूतम्) पवित्रम् (परिषिक्तम्) सर्वत आर्द्रीभूतं कृतम् (अंशोः) सूर्य्यस्य प्राप्तस्य ॥१९॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। मनुष्यैर्यथा विद्युत् समानरूपा सती सर्वान् रक्षति विकृता सती हन्ति, सा किरणान्न हिनस्ति। अन्नवत्पालिका भूत्वा सर्वाञ्जवयतीति वेद्यम् ॥१९॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जशी विद्युत समानरूपाने सर्वांचे रक्षण करते व विरूप झाल्यावर नाश करते, ती किरणांचा नाश करीत नाही तर अन्नाप्रमाणे पालन करणारी असून सर्वांना चालविते, हे जाणावे ॥ १९ ॥