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त्रीणि॑ श॒ता त्री स॒हस्रा॑ण्य॒ग्निं त्रिं॒शच्च॑ दे॒वा नव॑ चासपर्यन्। औक्ष॑न्घृ॒तैरस्तृ॑णन्ब॒र्हिर॑स्मा॒ आदिद्धोता॑रं॒ न्य॑सादयन्त॥

English Transliteration

trīṇi śatā trī sahasrāṇy agniṁ triṁśac ca devā nava cāsaparyan | aukṣan ghṛtair astṛṇan barhir asmā ād id dhotāraṁ ny asādayanta ||

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Pad Path

त्रीणि॑। श॒ता। त्री। स॒हस्रा॑णि। अ॒ग्निम्। त्रिं॒शत्। च॒। दे॒वाः। नव॑। च॒। अ॒स॒प॒र्य॒न्। औक्ष॑न्। घृ॒तैः। अस्तृ॑णन्। ब॒र्हिः। अ॒स्मै॒। आत्। इत्। होता॑रम्। नि। अ॒सा॒द॒य॒न्त॒॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:9» Mantra:9 | Ashtak:3» Adhyay:1» Varga:6» Mantra:4 | Mandal:3» Anuvak:1» Mantra:9


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर अग्नि क्या करता है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे विद्वान् लोगो ! जिस (अग्निम्) अग्नि को (त्रीणि) तीन (शता) सैकड़े (त्री) तीन (सहस्राणि) हजार तत्त्व (च) और (त्रिंशत्) पृथिवी आदि तीस तथा तीन तेंतीस (च) और (नव) नौ हिरण्यगर्भादि (देवाः) दिव्य गुणवाले पदार्थ (असपर्यन्) सेवन करते (घृतैः) जलों से (औक्षन्) सींचते (अस्मै) इस अग्नि के लिये (बर्हिः) पदार्थ वृद्धि का (अस्तृणन्) विस्तार करते उस (आत्) विद्याप्राप्ति के पश्चात् (होतारम्) आदर करनेवाले कार्यसाधक (इत्) को ही तुम लोग (नि, असादयन्त) कार्य्यों में निरन्तर युक्त करो ॥९॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जिसके आश्रय में तेंतीस हजार तीनसौ बयालीस तत्त्व हैं, जो एक सबको विद्युत् रूप से व्याप्त है, उस अग्नि के आश्रय से आप लोग सब कार्य्य सिद्ध करो ॥९॥ इस सूक्त में अग्नि और मनुष्यादि के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह नवमाँ सूक्त और छठा वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनरग्निः किं करोतीत्याह।

Anvay:

हे विद्वांसो यमग्निं त्रीणि शता त्री सहस्राणि त्रिंशच्च नव च देवा असपर्य्यन् घृतैरौक्षन्नस्मै बर्हिरस्तृणन्तमाद्धोतारमिदेव यूयं न्यसादयन्त ॥९॥

Word-Meaning: - (त्रीणि) (शता) शतानि (त्री) त्रीणि (सहस्राणि) तत्त्वानि (अग्निम्) पावकम् (त्रिंशत्) (च) त्रयश्च (देवाः) पृथिव्यादयः (नव) हिरण्यगर्भादयः (च) (असपर्यन्) सेवन्ते (औक्षन्) सिञ्चन्ति (घृतैः) उदकैः (अस्तृणन्) (बर्हिः) (अस्मै) (आत्) आनन्तर्ये (इत्) एव (होतारम्) आदातारम् (नि) (असादयन्त) कार्य्येषु नियोजयत ॥९॥
Connotation: - हे मनुष्या भवन्तो यस्याश्रये त्रयस्त्रिंशत्सहस्राणि त्रीणि शतानि द्विचत्वारिंशच्च तत्त्वानि सन्ति य एकः सर्वान् विद्युद्रूपेण व्याप्नोति तेनाग्निना सर्वाणि कार्य्याणि साध्नुवन्तु ॥९॥ अत्राग्निमनुष्यादिगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति वेद्यम् ॥ इति नवमं सूक्तं षष्ठो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो! ज्याच्या आश्रयाने तेहतीस हजार तीनशे बेचाळीस तत्त्व वर्तमान आहेत, जो विद्युतरूपाने सर्वांमध्ये व्याप्त आहे त्या अग्नीच्या आश्रयाने तुम्ही सर्व कार्य सिद्ध करा. ॥ ९ ॥