त्रीणि॑ श॒ता त्री स॒हस्रा॑ण्य॒ग्निं त्रिं॒शच्च॑ दे॒वा नव॑ चासपर्यन्। औक्ष॑न्घृ॒तैरस्तृ॑णन्ब॒र्हिर॑स्मा॒ आदिद्धोता॑रं॒ न्य॑सादयन्त॥
trīṇi śatā trī sahasrāṇy agniṁ triṁśac ca devā nava cāsaparyan | aukṣan ghṛtair astṛṇan barhir asmā ād id dhotāraṁ ny asādayanta ||
त्रीणि॑। श॒ता। त्री। स॒हस्रा॑णि। अ॒ग्निम्। त्रिं॒शत्। च॒। दे॒वाः। नव॑। च॒। अ॒स॒प॒र्य॒न्। औक्ष॑न्। घृ॒तैः। अस्तृ॑णन्। ब॒र्हिः। अ॒स्मै॒। आत्। इत्। होता॑रम्। नि। अ॒सा॒द॒य॒न्त॒॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर अग्नि क्या करता है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनरग्निः किं करोतीत्याह।
हे विद्वांसो यमग्निं त्रीणि शता त्री सहस्राणि त्रिंशच्च नव च देवा असपर्य्यन् घृतैरौक्षन्नस्मै बर्हिरस्तृणन्तमाद्धोतारमिदेव यूयं न्यसादयन्त ॥९॥
MATA SAVITA JOSHI
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