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अति॑ तृ॒ष्टं व॑वक्षि॒थाथै॒व सु॒मना॑ असि। प्रप्रा॒न्ये यन्ति॒ पर्य॒न्य आ॑सते॒ येषां॑ स॒ख्ये असि॑ श्रि॒तः॥

English Transliteration

ati tṛṣṭaṁ vavakṣithāthaiva sumanā asi | pra-prānye yanti pary anya āsate yeṣāṁ sakhye asi śritaḥ ||

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Pad Path

अति॑। तृ॒ष्टम्। व॒व॒क्षि॒थ॒। अथ॑। ए॒व। सु॒ऽमनाः॑। अ॒सि॒। प्रऽप्र॑। अ॒न्ये। यन्ति॑। परि॑। अ॒न्ये। आ॒स॒ते॒। येषा॑म्। स॒ख्ये। असि॑। श्रि॒तः॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:9» Mantra:3 | Ashtak:3» Adhyay:1» Varga:5» Mantra:3 | Mandal:3» Anuvak:1» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब कौन मनुष्य जगत् में पूज्य होते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे विद्वान् जन ! जिस कारण आप (तृष्टम्) प्यासे को (ववक्षिथ) प्राप्त करना चाहते (अथ) अथवा (सुमनाः) प्रसन्नचित्त (एव) ही (असि) हैं तथा (येषाम्) जिनकी (सख्ये) मित्रता वा मित्र कर्म में आप (श्रितः) संयुक्त (असि) हैं उनमें से (अन्ये) अन्य लोग (प्रप्र, अति, यन्ति) विशेष कर अत्यन्त प्राप्त होते तथा (अन्ये) अन्य लोग (परि, आसते) सब ओर से बैठते हैं ॥३॥
Connotation: - जो लोग मित्रभाव से प्यासे के लिये जल के तुल्य विद्या चाहनेवाले के अर्थ विद्या देकर प्रसन्नरूप करते हैं, वे ही जगत् में पूज्य होते हैं ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ के जगति पूज्या भवन्तीत्याह।

Anvay:

हे विद्वन् यतस्त्वं तृष्टं ववक्षिथाऽथ सुमना एवासि येषां सख्ये त्वं श्रितोऽसि तेषां मध्यादन्ये प्रप्रातियन्ति। अन्ये पर्य्यासते ॥३॥

Word-Meaning: - (अति) (तृष्टम्) पिपासितम् (ववक्षिथ) वोढुमिच्छ (अथ) (एव) (सुमनाः) प्रसन्नचित्तः (असि) (प्रप्र) प्रकर्षेण (अन्ये) (यन्ति) गच्छन्ति (परि) सर्वतः (अन्ये) इतरे (आसते) उपविशन्ति (येषाम्) (सख्ये) सख्युर्भावे कर्मणि वा (असि) (श्रितः) ॥३॥
Connotation: - ये मित्रभावेन तृषातुराय जलमिव विद्यामिच्छवे विद्यां दत्वा प्रसन्नात्मानं कुर्वन्ति त एव जगत्पूज्या भवन्ति ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे लोक मित्रभावाने तृषार्ताला जसे पाणी तसे विद्या प्राप्त करू इच्छिणाऱ्यांना विद्या देऊन प्रसन्न करतात, तेच जगात पूज्य होतात. ॥ ३ ॥