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सखा॑यस्त्वा ववृमहे दे॒वं मर्ता॑स ऊ॒तये॑। अ॒पां नपा॑तं सु॒भगं॑ सु॒दीदि॑तिं सु॒प्रतू॑र्तिमने॒हस॑म्॥

English Transliteration

sakhāyas tvā vavṛmahe devam martāsa ūtaye | apāṁ napātaṁ subhagaṁ sudīditiṁ supratūrtim anehasam ||

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Pad Path

सखा॑यः। त्वा॒। व॒वृ॒म॒हे॒। दे॒वम्। मर्ता॑सः। ऊ॒तये॑। अ॒पाम्। नपा॑तम्। सु॒ऽभग॑म्। सु॒ऽदीदि॑तिम्। सु॒ऽप्रतू॑र्तिम्। अ॒ने॒हस॑म्॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:9» Mantra:1 | Ashtak:3» Adhyay:1» Varga:5» Mantra:1 | Mandal:3» Anuvak:1» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब नव ऋचावाले नवमें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में मनुष्यों को अहिंसा धर्म का ग्रहण करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे उपदेशक सज्जन ! (मर्त्तासः) मननशील (सखायः) मित्र हुए हम लोग (ऊतये) रक्षा आदि के लिये (अपाम्) प्राणों के बीच (नपातम्) आत्मभाव से नाशरहित (अनेहसम्) न मारनेहारे (सुप्रतूर्त्तिम्) सुन्दर शीघ्रतायुक्त (सुदीदितिम्) विद्या और विनय के प्रकाश से युक्त (सुभगम्) उत्तम ऐश्वर्य्यवाले (देवम्) विद्वान् (त्वा) आपको (ववृमहे) स्वीकार करें ॥१॥
Connotation: - मनुष्यों को चाहिये कि विद्यादि सौभाग्य जानने के लिये मित्रभाव का आश्रय कर और आप्त सत्य वक्ता विद्वान् के शरण को प्राप्त हो के अहिंसाधर्म का संग्रह करें ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ मनुष्यैरहिंसाधर्मो ग्राह्य इत्याह।

Anvay:

हे उपदेशक मर्त्तासः सखायो वयमूतये अपां नपातमनेहसं सुप्रतूर्त्तिं सुदीदितिं सुभगं देवं त्वा ववृमहे ॥१॥

Word-Meaning: - (सखायः) सुहृदः सन्तः (त्वा) त्वाम् (ववृमहे) वृणुयाम (देवम्) विद्वांसम् (मर्त्तासः) मननशीला मनुष्याः (ऊतये) रक्षणाय (अपाम्) प्राणानां मध्ये (नपातम्) आत्मत्वेन नाशरहितम् (सुभगम्) उत्तमैश्वर्यम् (सुदीदितिम्) विद्याविनयप्रकाशयुक्तम्। दीदयतीति ज्वलतिकर्मा। निघं०१। १६। (सुप्रतूर्त्तिम्) सुष्ठु प्रकृष्टा तूर्त्तिः शीघ्रता यस्मिँस्तम् (अनेहसम्) अहन्तारम् ॥१॥
Connotation: - मनुष्यैर्विद्यादिसौभाग्यजननाय सुहृद्भावमाश्रित्याप्तस्य विदुषः शरणं गत्वाऽहिंसाधर्मः सङ्ग्रहीतव्यः ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात अग्नी व माणसे इत्यादींच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - माणसांनी विद्या इत्यादी सौभाग्य निर्माण करण्यासाठी मित्रभावाने आप्त विद्वानाला शरण जाऊन अहिंसा धर्माचा संचय करावा. ॥ १ ॥