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उच्छ्र॑यस्व वनस्पते॒ वर्ष्म॑न्पृथि॒व्या अधि॑। सुमि॑ती मी॒यमा॑नो॒ वर्चो॑ धा य॒ज्ञवा॑हसे॥

English Transliteration

uc chrayasva vanaspate varṣman pṛthivyā adhi | sumitī mīyamāno varco dhā yajñavāhase ||

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Pad Path

उत्। श्र॒य॒स्व॒। व॒न॒स्प॒ते॒। वर्ष्म॑न्। पृ॒थि॒व्याः। अधि॑। सुऽमि॑ती। मी॒यमा॑नः। वर्चः॑। धाः॒। य॒ज्ञऽवा॑हसे॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:8» Mantra:3 | Ashtak:3» Adhyay:1» Varga:3» Mantra:3 | Mandal:3» Anuvak:1» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (वर्ष्मन्) श्रेष्ठ गुणों के प्रचारक (वनस्पते) सेवने योग्य धन के रक्षक विद्वान् ! आप (पृथिव्याः) भूमि के (अधि) ऊपर खम्भ के तुल्य (उत्, श्रयस्व) ऊँचे हूजिये (मीयमानः) सत्कार किये हुए (सुमती) सुन्दर बुद्धि से (यज्ञवाहसे) पढ़ने-पढ़ाने आदि यज्ञ के प्राप्त करानेहारे विद्यार्थी के लिये (वर्चः) पढ़ने रूप तेज को (धाः) धारण कीजिये ॥३॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे वट आदि वनस्पति जड़, स्कन्ध, डाली आदि से बढ़ते हैं, वैसे ही पुरुषार्थ के साथ विद्याओं का प्रचार कर मनुष्यों को बढ़ाना चाहिये ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्यैः किं कर्तव्यमित्याह।

Anvay:

हे वर्ष्मन् वनस्पते ! त्वं पृथिव्या अधि स्तम्भइवोच्छ्रयस्व मीयमानः सन्सुमती यज्ञवाहसे वर्चो धाः ॥३॥

Word-Meaning: - (उत्) (श्रयस्व) (वनस्पते) वननीयस्य धनस्य रक्षक (वर्ष्मन्) सद्गुणानां सेचक (पृथिव्याः) भूमेः (अधि) उपरि (सुमिती) शोभनया प्रज्ञया। अत्र पूर्वसवर्णादेशः। माङ्मान इत्यस्मात् क्तिनि द्यतिस्यतिमास्थेतीत्वम्। धातूनामनेकार्थत्वाज् ज्ञानार्थत्वम् (मीयमानः) सत्क्रियमाणः (वर्चः) अध्यापनतेजः (धाः) धेहि (यज्ञवाहसे) यज्ञस्याऽध्ययनाऽध्यापनस्य प्राप्तये ॥३॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा वटादयो वनस्पतयो मूलस्कन्धशाखादिभिर्वर्द्धन्ते तथैव पुरुषार्थेन विद्याः प्रचार्य्य मनुष्यैर्वर्द्धनीयम् ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे वड इत्यादी वनस्पती मूळ, खोड, फांद्या इत्यादीने वाढतात, तसेच पुरुषार्थाने विद्येचा प्रचार करून माणसांना वाढविले पाहिजे. ॥ ३ ॥