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अ॒ञ्जन्ति॒ त्वाम॑ध्व॒रे दे॑व॒यन्तो॒ वन॑स्पते॒ मधु॑ना॒ दैव्ये॑न। यदू॒र्ध्वस्तिष्ठा॒ द्रवि॑णे॒ह ध॑त्ता॒द्यद्वा॒ क्षयो॑ मा॒तुर॒स्या उ॒पस्थे॑॥

English Transliteration

añjanti tvām adhvare devayanto vanaspate madhunā daivyena | yad ūrdhvas tiṣṭhā draviṇeha dhattād yad vā kṣayo mātur asyā upasthe ||

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Pad Path

अ॒ञ्जन्ति॑। त्वाम्। अ॒ध्व॒रे। दे॒व॒ऽयन्तः॑। वन॑स्पते। मधु॑ना। दैव्ये॑न। यत्। ऊ॒र्ध्वः। ति॒ष्ठाः॑। द्रवि॑णा। इ॒ह। ध॒त्ता॒त्। यत्। वा॒। क्षयः॑। मा॒तुः। अ॒स्याः। उ॒पऽस्थे॑॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:8» Mantra:1 | Ashtak:3» Adhyay:1» Varga:3» Mantra:1 | Mandal:3» Anuvak:1» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब तीसरे मण्डल के आठवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में मनुष्य लोग किसकी कामना करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (वनस्पते) किरणों के रक्षक सूर्य्य के समान वर्त्तमान तेजस्वी विद्वन् ! (मधुना) (दैव्येन) विद्वानों में हुए कोमल स्वभाव के साथ वर्त्तमान (देवयन्तः) कामना करते हुए विद्वान् (यत्) जिन (त्वाम्) आपको (अध्वरे) पढ़ने-पढ़ाने और राज्य पालनादि व्यवहार में (अञ्जन्ति) चाहते हैं, सो आप जिनके बीच (ऊर्ध्वः) श्रेष्ठ गुणों से बढ़े हुए (तिष्ठाः) स्थित हूजिये (वा) और (इह) इस संसार में (द्रविणा) धनों को (धत्तात्) धारण करो (अस्याः) इस (मातुः) मान देनेवाली भूमि के (उपस्थे) समीप गोद में (यत्) जो (क्षयः) निवास्थान है, उसको हम लोग ग्रहण करें ॥१॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे प्राणी दिन को चाहते हैं, वैसे ही उत्तम विद्वान् लोगों को सब मनुष्य चाहें। सब मिल के प्रीति से उत्तम घर और ऐश्वर्य्य की सिद्धि करें ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ मनुष्याः केषां कामनां कुर्य्युऽरित्याह।

Anvay:

हे वनस्पते ! मधुना दैव्येन सह वर्त्तमाना देवयन्तो विद्वांसो यद्यं त्वामध्वरे अञ्जन्ति स त्वं येषामूर्ध्वस्तिष्ठा इह द्रविणा वा धत्तादस्या मातुरुपस्थे यत् क्षयोऽस्ति तद्वयमपि गृह्णीयाम ॥१॥

Word-Meaning: - (अञ्जन्ति) कामयन्ते (त्वाम्) (अध्वरे) अध्ययनाध्यापनराजपालनादिव्यवहारे (देवयन्तः) कामयमानाः (वनस्पते) वनस्य रश्मिसमूहस्य पालकः सूर्य्यस्तद्वद्वर्त्तमान (मधुना) मधुरस्वभावेन (दैव्येन) देवेषु विद्वत्सु भवेन (यत्) यम् (ऊर्ध्वः) सद्गुणैरुत्कृष्टः (तिष्ठाः) तिष्ठेः (द्रविणा) द्रविणानि धनानि (इह) अस्मिन् संसारे (धत्तात्) दध्याः (यत्) (वा) (क्षयः) निवासस्थानम् (मातुः) माननिमित्तायाः (अस्याः) भूमेः (उपस्थे) समीपे ॥१॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा सर्वे प्राणिनो दिनं कामयन्ते तथैवोत्तमान्विदुषः सर्वे कामयन्ताम्। सर्वे मिलित्वा प्रीत्योत्तमं गृहमैश्वर्य्यं च साध्नुवन्ति ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात विद्वान, वेदपाठी व ब्रह्मचारी यांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे सर्व प्राण्यांना दिवस आवडतो तसेच उत्तम विद्वान लोक सर्व माणसांना आवडतात. सर्वांनी मिळून प्रेमाने उत्तम घर व ऐश्वर्य सिद्ध करावे. ॥ १ ॥