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आ सी॑मरोहत्सु॒यमा॒ भव॑न्तीः॒ पति॑श्चिकि॒त्वान्र॑यि॒विद्र॑यी॒णाम्। प्र नील॑पृष्ठो अत॒सस्य॑ धा॒सेस्ता अ॑वासयत्पुरु॒धप्र॑तीकः॥

English Transliteration

ā sīm arohat suyamā bhavantīḥ patiś cikitvān rayivid rayīṇām | pra nīlapṛṣṭho atasasya dhāses tā avāsayat purudhapratīkaḥ ||

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Pad Path

आ। सी॒म्। अ॒रो॒ह॒त्। सु॒ऽयमाः॑। भव॑न्तीः। पतिः॑। चि॒कि॒त्वान्। र॒यि॒ऽवित्। र॒यी॒णाम्। प्र। नील॑ऽपृष्ठः। अ॒त॒सस्य॑। धा॒सेः। ताः। अ॒वा॒स॒य॒त्। पु॒रु॒धऽप्र॑तीकः॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:7» Mantra:3 | Ashtak:3» Adhyay:1» Varga:1» Mantra:3 | Mandal:3» Anuvak:1» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर राजा क्या करे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे विद्वन् (चिकित्वान्) ज्ञानी (रयिवित्) द्रव्यवेत्ता (रयीणाम्) धनों के (पतिः) स्वामी ! आप जैसे (पुरुधप्रतीकः) अनेकों के पोषण के वा धारण के हेतु प्रतीतिकारी कर्मवाला (नीलपृष्ठः) जिसके पिछले भाग में नीलवर्ण है ऐसा (सीम्) सूर्य्यमण्डल (अतसस्य) व्याप्त बुद्धि (धासेः) पोषण करनेवाले राजा की जो (भवन्तीः) वर्त्तमान (सुयमाः) सुन्दर नियमवाली प्रजाओं को (प्र, आ, अवासयत्) अच्छे प्रकार वास कराता और (अरोहत्) अपने काम में आरूढ़ होता है वैसे (ताः) उन सुन्दर नियमयुक्त प्रजाओं को अच्छे प्रकार वास कराइये ॥३॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे सूर्य्य सब प्रजाओं को उठा के अच्छे प्रकार वास कराता है, वैसे ही राजा सुशिक्षित रक्षा की हुई प्रजाओं को भूगोल के सब देशों में वसा के धनाढ्य करे ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुना राजा किं कुर्य्यादित्याह।

Anvay:

हे विद्वन् चिकित्वान् रयिविद्रयीणां पतिस्त्वं यथा पुरुधप्रतीको नीलपृष्ठः सीमादित्योऽतसस्य धासेर्या भवन्ती सुयमाः प्रावासयदरोहच्च तथा ताः सुयमाः प्रजा आवासय ॥३॥

Word-Meaning: - (आ) (सीम्) आदित्यः (अरोहत्) रोहति (सुयमाः) (भवन्तीः) वर्त्तमानाः (पतिः) स्वामी (चिकित्वान्) ज्ञानवान् (रयिवित्) द्रव्यवेत्ता (रयीणाम्) धनानाम् (प्र) (नीलपृष्ठः) नीलो वर्णः पृष्ठे यस्य सः (अतसस्य) व्याप्तस्य (धासेः) पोषकस्य (ताः) (अवासयत्) वासयेत् (पुरुधप्रतीकः) पुरून् बहून् दधाति येन तत् पुरुधं पुरुधं प्रतीतिकरं कर्म यस्य सः ॥३॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा सूर्यः सर्वाः प्रजा उत्थाप्य वासयति तथैव राजा स्वकीयाः सुशिक्षिता रक्षिताः प्रजा भूगोलस्थेषु देशेषु वासयित्वा धनाढ्याः प्रकुर्यात् ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा सूर्य सर्व प्रजेला चांगल्या प्रकारे वसवितो तसेच राजाने सुशिक्षित व रक्षित प्रजेला भूगोलातील सर्व देशांमध्ये वसवून धनाढ्य करावे. ॥ ३ ॥