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ऋ॒ताव॑री दि॒वो अ॒र्कैर॑बो॒ध्या रे॒वती॒ रोद॑सी चि॒त्रम॑स्थात्। आ॒य॒तीम॑ग्न उ॒षसं॑ विभा॒तीं वा॒ममे॑षि॒ द्रवि॑णं॒ भिक्ष॑माणः॥

English Transliteration

ṛtāvarī divo arkair abodhy ā revatī rodasī citram asthāt | āyatīm agna uṣasaṁ vibhātīṁ vāmam eṣi draviṇam bhikṣamāṇaḥ ||

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Pad Path

ऋ॒तऽव॑री। दि॒वः। अ॒र्कैः। अ॒बो॒धि॒। आ। रे॒वती॑। रोद॑सी॒ इति॑। चि॒त्रम्। आ॒स्था॒त्। आ॒य॒तीम्। अ॒ग्ने॒। उ॒षस॑म्। वि॒ऽभा॒तीम्। वा॒मम्। ए॒षि॒। द्रवि॑णम्। भिक्ष॑माणः॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:61» Mantra:6 | Ashtak:3» Adhyay:4» Varga:8» Mantra:6 | Mandal:3» Anuvak:5» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब प्रातर्वेला ही के गुणों को कहते हैं।

Word-Meaning: - हे (अग्ने) विद्वान् जन ! जो (रेवती) उत्तम धन करनेवाली (ऋतावरी) जिसमें सत्य विद्यमान ऐसी (दिवः) प्रकाश से उत्पन्न हुई वेला (अर्कैः) सूर्य्यों से (अबोधि) जानी जाती है (रोदसी) अन्तरिक्ष और पृथिवी को (आ, अस्थात्) अच्छे प्रकार स्थित करती है उस (आयतीम्) आती और (विभातीम्) प्रकाशित करती हुई (उषसम्) प्रभातवेला को प्राप्त होकर समाधि से जगदीश्वर की (भिक्षमाणः) याचना करते हुए आप (चित्रम्) अद्भुत (वामम्) उत्तम प्रशंसा योग्य (द्रविणम्) धन को (एषि) प्राप्त होते हो ॥६॥
Connotation: - जो लोग रात्रि के चौथे पहर में जाग के ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना और उपासना करके उत्तमगुणों और ऐश्वर्य्य को माँगते हैं, वे पुरुषार्थ से अवश्य इसको प्राप्त होते हैं ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ प्रातर्वेलाया एव गुणानाह।

Anvay:

हे अग्ने विद्वन् ! या रेवती ऋतावरी दिवो जातोषा अर्कैरबोधि रोदसी आस्थात् तामायतीं विभातीमुषसं प्राप्य समाधिना जगदीश्वरं भिक्षमाणस्त्वं चित्रं वामं द्रविणमेषि ॥६॥

Word-Meaning: - (ऋतावरी) ऋतं सत्यं विद्यते यस्यां सा (दिवः) प्रकाशात् (अर्कैः) सूर्यैः (अबोधि) बुध्यते (आ) (रेवती) प्रशस्तधनकारिणी (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ (चित्रम्) अद्भुतम् (अस्थात्) तिष्ठति (आयतीम्) आगच्छन्तीम् (अग्ने) विद्वन् (उषसम्) (विभातीम्) प्रकाशयन्तीम् (वामम्) प्रशस्तम् (एषि) प्राप्नोषि (द्रविणम्) धनम् (भिक्षमाणः) याचमानः ॥६॥
Connotation: - ये जना रात्रेश्चतुर्थे यामे प्रबुध्येश्वरस्य स्तुतिप्रार्थनोपासनाः कृत्वा शुभान्गुणानैश्वर्य्यं च याचन्ते ते पुरुषार्थेनाऽवश्यमेतत्प्राप्नुवन्ति ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे लोक रात्रीच्या चौथ्या प्रहरी जागे होऊन ईश्वराची स्तुती, प्रार्थना, उपासना करून उत्तम गुण व ऐश्वर्य मागतात ते पुरुषार्थाने अवश्य ऐश्वर्य प्राप्त करतात. ॥ ६ ॥