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उषः॑ प्रती॒ची भुव॑नानि॒ विश्वो॒र्ध्वा ति॑ष्ठस्य॒मृत॑स्य के॒तुः। स॒मा॒नमर्थं॑ चरणी॒यमा॑ना च॒क्रमि॑व नव्य॒स्या व॑वृत्स्व॥

English Transliteration

uṣaḥ pratīcī bhuvanāni viśvordhvā tiṣṭhasy amṛtasya ketuḥ | samānam arthaṁ caraṇīyamānā cakram iva navyasy ā vavṛtsva ||

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Pad Path

उषः॑। प्र॒ती॒ची। भुव॑नानि। विश्वा॑। ऊ॒र्ध्वा। ति॒ष्ठ॒सि॒। अ॒मृत॑स्य। के॒तुः। स॒मा॒नम्। अर्थ॑म्। च॒र॒णी॒यमा॑ना। च॒क्रम्ऽइ॑व। न॒व्य॒सि॒। आ। व॒वृ॒त्स्व॒॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:61» Mantra:3 | Ashtak:3» Adhyay:4» Varga:8» Mantra:3 | Mandal:3» Anuvak:5» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

Word-Meaning: - हे स्त्रि ! जैसे (विश्वा) सम्पूर्ण (भुवनानि) उत्पन्न हुए लोकों को (प्रतीची) प्राप्त होने और (अमृतस्य) अमृतस्वरूप रस की (केतुः) जनानेवाली (ऊर्ध्वा) ऊपर को वर्त्तमान (चक्रमिव) पहिये के सदृश चलनेवाले (समानम्) तुल्य (अर्थम्) वस्तु को (चरणीयमाना) प्राप्त होती हुई (नव्यसि) अत्यन्त नवीन (उषः) प्रातःकाल की वेला वर्त्तमान और (तिष्ठसि) स्थिर होती है, वैसे ही आप (आ, ववृत्स्व) वर्त्ताव करिये ॥३॥
Connotation: - हे उत्तम स्त्रियो ! जैसे प्रातःकाल सम्पूर्ण भुवनों के खण्डों को प्रकाशित करते हैं, वैसे ही उत्तम व्यवहारों को प्रकाशित करो ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे स्त्रि यथा विश्वा भुवनानि प्रतीच्यमृतस्य केतुरूर्ध्वा चक्रमिव समानमर्थं चरणीयमाना नव्यस्युष आ वर्त्तते तिष्ठसि तथैव त्वमाववृत्स्व ॥३॥

Word-Meaning: - (उषः) उषाः (प्रतीची) प्रत्यञ्चति प्राप्नोति सा (भुवनानि) लोकजातानि (विश्वा) सर्वाणि (ऊर्ध्वा) ऊर्ध्वं स्थिता (तिष्ठसि) तिष्ठति। अत्र पुरुषव्यत्ययः। (अमृतस्य) अमृतात्मकस्य रसस्य (केतुः) प्रज्ञापिका (समानम्) (अर्थम्) वस्तु (चरणीयमाना) प्राप्नुवती (चक्रमिव) यथा चक्रं गच्छति तथा (नव्यसि) अतिशयेन नवीना (आ) (ववृत्स्व) आवर्त्तस्व ॥३॥
Connotation: - हे सत्स्त्रियो यथोषसः सर्वाणि भुवनानि प्रकाशयन्ति तथैव सद्व्यवहारान् प्रकाशयत ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे उत्तम स्त्रियांनो! जशी उषा संपूर्ण जग प्रकाशित करते तशाच सद्व्यवहाराने प्रकाशित व्हा. ॥ ३ ॥