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इन्द्र॑ ऋभु॒मान्वाज॑वान्मत्स्वे॒ह नो॒ऽस्मिन्त्सव॑ने॒ शच्या॑ पुरुष्टुत। इ॒मानि॒ तुभ्यं॒ स्वस॑राणि येमिरे व्र॒ता दे॒वानां॒ मनु॑षश्च॒ धर्म॑भिः॥

English Transliteration

indra ṛbhumān vājavān matsveha no smin savane śacyā puruṣṭuta | imāni tubhyaṁ svasarāṇi yemire vratā devānām manuṣaś ca dharmabhiḥ ||

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Pad Path

इन्द्र॑। ऋ॒भु॒ऽमान्। वाज॑ऽवान्। म॒त्स्व॒। इ॒ह। नः॒। अ॒स्मिन्। सव॑ने। शच्या॑। पु॒रु॒ऽस्तु॒त॒। इ॒मानि॑। तुभ्य॑म्। स्वस॑राणि। ये॒मि॒रे॒। व्र॒ता। दे॒वाना॑म्। मनु॑षः। च॒। धर्म॑ऽभिः॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:60» Mantra:6 | Ashtak:3» Adhyay:4» Varga:7» Mantra:6 | Mandal:3» Anuvak:5» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

Word-Meaning: - हे (शच्या) बुद्धि वा वाणी से (पुरुष्टुत) बहुतों से प्रशंसा किये गये (इन्द्र) अत्यन्त ऐश्वर्यवान् राजन् ! आप (इह) इस राज्य में (ऋभुमान्) बहुत बुद्धिमान् और (वाजवान्) बहुत अन्न आदि ऐश्वर्य्ययुक्त होते हुए (नः) हम लोगों के (अस्मिन्) इस (सवने) ऐश्वर्य्ययुक्त राज्य में (मत्स्व) आनन्दित होओ जिन (तुभ्यम्) आपके लिये (इमानि) यह वर्त्तमान (स्वसराणि) दिन (येमिरे) नियत होते हैं वह आप (देवानाम्) विद्वानों के (धर्मभिः) धर्मों के सहित (व्रता) सुशीलकर्मों को ग्रहण करके (मनुषः) मनुष्यों को (च) भी आनन्दित करो ॥६॥
Connotation: - हे राजन् ! आप सदा धर्मात्मा और बुद्धिमानों के सङ्गी और मूर्खों के सङ्ग के त्यागी होकर एक क्षण भी व्यर्थ न व्यतीत करो और जैसे यथार्थवक्ता पुरुष पक्षपात का त्याग करके सबके साथ कपटरहित वर्त्ताव करते हैं, वैसा ही वर्त्ताव करो ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे शच्या पुरुष्टुतेन्द्र त्वमिह ऋभुमान् वाजवान् सन्नोऽस्मिन्सवने मत्स्व यस्मै तुभ्यमिमानि स्वसराणि येमिरे स त्वं देवानां धर्मभिस्सहितानि व्रता गृहीत्वा मनुषश्चानन्दय ॥६॥

Word-Meaning: - (इन्द्र) परमैश्वर्यवन्राजन् (ऋभुमान्) बहव ऋभवो मेधाविनो विद्यन्ते यस्य सः (वाजवान्) बहवो वाजा अन्नाद्यैश्वर्ययोगा विद्यन्ते यस्य सः (मत्स्व) आनन्द (इह) अस्मिन्राज्ये (नः) अस्माकम् (अस्मिन्) (सवने) ऐश्वर्ययुक्ते राज्ये (शच्या) प्रज्ञया वाण्या वा (पुरुष्टुत) बहुभिः प्रशंसित (इमानि) वर्त्तमानानि (तुभ्यम्) (स्वसराणि) दिनानि (येमिरे) यच्छन्तु (व्रता) सुशीलानि कर्माणि (देवानाम्) विदुषाम् (मनुषः) मनुष्यान् (च) (धर्मभिः) धर्मैः ॥६॥
Connotation: - हे राजंस्त्वं सदा धर्मात्मप्रज्ञसङ्गी मूर्खासङ्गी भूत्वैकं क्षणमपि व्यर्थं मा नय। यथाप्ताः पक्षपातं विहाय सर्वैस्सह निष्कपटत्वेन वर्त्तन्ते तथैव वर्त्तस्व ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे राजा! तू सदैव धर्मात्मा बुद्धिमानांची संगती कर व मूर्खांच्या संगतीत एक क्षणही वाया घालवू नकोस. जसे आप्त पुरुष पक्षपात न करता सर्वांबरोबर कपटरहित वर्तन करतात तसेच वर्तन कर. ॥ ६ ॥