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इन्द्र॑ ऋ॒भुभि॒र्वाज॑वद्भिः॒ समु॑क्षितं सु॒तं सोम॒मा वृ॑षस्वा॒ गभ॑स्त्योः। धि॒येषि॒तो म॑घवन्दा॒शुषो॑ गृ॒हे सौ॑धन्व॒नेभिः॑ स॒ह म॑त्स्वा॒ नृभिः॑॥

English Transliteration

indra ṛbhubhir vājavadbhiḥ samukṣitaṁ sutaṁ somam ā vṛṣasvā gabhastyoḥ | dhiyeṣito maghavan dāśuṣo gṛhe saudhanvanebhiḥ saha matsvā nṛbhiḥ ||

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Pad Path

इन्द्र॑। ऋ॒भुऽभिः॑। वाज॑वत्ऽभिः। सम्ऽउ॑क्षितम्। सु॒तम्। सोम॑म्। आ। वृ॒ष॒स्व॒। गभ॑स्त्योः। धि॒या। इ॒षि॒तः। म॒घ॒व॒न्। दा॒शुषः॑। गृ॒हे। सौ॒ध॒न्व॒नेभिः॑। स॒ह। म॒त्स्व॒। नृऽभिः॑॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:60» Mantra:5 | Ashtak:3» Adhyay:4» Varga:7» Mantra:5 | Mandal:3» Anuvak:5» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

Word-Meaning: - हे (मघवन्) प्रंशसितधनयुक्त (इन्द्र) अत्यन्त ऐश्वर्य्यवाले ! (धिया) बुद्धि से (इषितः) प्रेरित आप (वाजवद्भिः) प्रशंसनीय अन्न आदि ऐश्वर्यों से युक्त (ऋभुभिः) बुद्धिमानों के साथ (समुक्षितम्) उत्तम प्रकार सींचे (सुतम्) उत्पन्न किये गये (सोमम्) ऐश्वर्य को (गभस्त्योः) हाथों के बल से (आ, वृषस्व) सब प्रकार पुष्टिये, (सौधन्वनेभिः) बुद्धिमानों के पुत्रों और (नृभिः) विद्या आदि व्यवहारों में अग्रगन्ता जनों के (सह) साथ (दाशुषः) देनेवाले के (गृहे) घर में (मत्स्व) आनन्दित हूजिये ॥५॥
Connotation: - राजा को चाहिये कि बुद्धिमान् जनों के सहित प्रजाओं की रक्षा और न्याय से ऐश्वर्य की वृद्धि करके तथा राज्य के कर देनेवालों को आनन्दित करके नायकों के साथ प्रजाओं को सदैव आनन्दित करैं ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे मघवन्निन्द्र धियेषितस्त्वं वाजवद्भिर्ऋभुभिस्सह समुक्षितं सुतं सोमं गभस्त्योर्बलेनावृषस्व। सौधन्वनेभिर्नृभिस्सह दाशुषो गृहे मत्स्व ॥५॥

Word-Meaning: - (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् राजन् ! (ऋभुभिः) मेधाविभिः (वाजवद्भिः) प्रशस्तान्नाद्यैश्वर्ययुक्तैः सह (समुक्षितम्) सम्यक्सिक्तम् (सुतम्) निष्पादितम् (सोमम्) ऐश्वर्यम् (आ) (वृषस्व) बलिष्ठो भव। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (गभस्त्योः) हस्तयोः (धिया) प्रज्ञया (इषितः) प्रेरितः (मघवन्) प्रशंसितधनयुक्त (दाशुषः) दातुः (गृहे) (सौधन्वनेभिः) मेधाविपुत्रैः (सह) (मत्स्व) आनन्द। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (नृभिः) विद्यादिव्यवहारेषु नायकैः ॥५॥
Connotation: - राज्ञा प्राज्ञैर्जनैस्सहितेन प्रजाः संरक्ष्य न्यायेनैश्वर्यमुन्नीय राजकरदातॄनानन्द्य नायकैः सह प्रजाः सदैव रञ्जनीयाः ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - राजाने बुद्धिमान लोकांसह प्रजेचे रक्षण व न्यायाने ऐश्वर्याची वृद्धी करावी. राज्याचा कर देणाऱ्यांना आनंदित करावे. विद्या व्यवहारात असणाऱ्या प्रमुख लोकांसह प्रजेला आनंदित करावे. ॥ ५ ॥