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ऐभि॑रग्ने स॒रथं॑ याह्य॒र्वाङ् ना॑नार॒थं वा॑ वि॒भवो॒ ह्यश्वाः॑। पत्नी॑वतस्त्रिं॒शतं॒ त्रींश्च॑ दे॒वान॑नुष्व॒धमा व॑ह मा॒दय॑स्व॥

English Transliteration

aibhir agne sarathaṁ yāhy arvāṅ nānārathaṁ vā vibhavo hy aśvāḥ | patnīvatas triṁśataṁ trīm̐ś ca devān anuṣvadham ā vaha mādayasva ||

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Pad Path

आ। ए॒भिः॒। अ॒ग्ने॒। स॒ऽरथ॑म्। या॒हि॒। अ॒र्वाङ्। ना॒नाऽर॒थम्। वा॒। वि॒ऽभवः॑। हि। अश्वाः॑। पत्नी॑ऽवतः। त्रिं॒शत॑म्। त्रीन्। च॒। दे॒वान्। अ॒नु॒ऽस्व॒धम्। आ। व॒ह॒। मा॒दय॑स्व॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:6» Mantra:9 | Ashtak:2» Adhyay:8» Varga:27» Mantra:4 | Mandal:3» Anuvak:1» Mantra:9


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (अग्ने) अग्नि के समान ज्ञान से प्रकाशमय ! जो अग्नि की (विभवः) व्यापक (अश्वाः) किरणें (नानारथम्) जिसमें अनेक रथ विद्यमान उसे (वा) वा (त्रीन्) तीन (त्रिंशतम् च) और तीस (पत्नीवतः) प्रशस्त पत्नियोंवाले (देवान्) पृथिवी आदि लोकों को (अनुस्वधम्) अन्न के अनुकूल पहुँचाती हैं (एभिः) इनसे आप (अर्वाङ्) जो नीचे को प्राप्त होता वा ऊपर को पहुँचता है उस (सरथम्) रथों के सहित वर्त्तमान मार्ग को (आ, याहि) आओ प्राप्त होओ और हम लोगों को (आ, वह) प्राप्त कीजिये तथा (मादयस्व) हर्षित कीजिये ॥९॥
Connotation: - जैसे अग्नि तैंतीस पृथिवी आदि दिव्यगुणी पदार्थों को धारण करता और व्यापक होकर अपने रूप कर देता है, वैसे विद्वान् जन विज्ञान से सबको जानकर तथा औरों के प्रति उपदेश कर आनन्द देते हैं ॥९॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे अग्ने ! येऽग्नेर्विभवोऽश्वा नानारथं वा त्रीन् त्रिंशतं च पत्नीवतो देवाननुष्वधमावहन्ति य एभिस्त्वमर्वाङूर्ध्वं सरथमायाह्यस्मानावह मादयस्व च ॥९॥

Word-Meaning: - (आ) समन्तात् (एभिः) (अग्ने) अग्निवज्ज्ञानेन प्रकाशमय (सरथम्) रथैः सह वर्त्तमानम् (याहि) (अर्वाङ्) योऽवस्तादञ्चत्यधो गच्छति सः (नानारथम्) नाना रथा यस्मिँस्तम् (वा) (विभवः) व्यापकाः (हि) खलु (अश्वाः) किरणाः (पत्नीवतः) प्रशस्ताः पत्न्यो विद्यन्ते येषान्तान् (त्रिंशतम्) (त्रीन्) (च) (देवान्) पृथिव्यादीन् (अनुष्वधम्) अन्वन्नम् (आ) (वह) (मादयस्व) आनन्दय ॥९॥
Connotation: - यथाऽग्निस्त्रयस्त्रिंशतः पृथिव्यादीन् दिव्यगुणान् पदार्थान्धरति तत्र व्यापको भूत्वा स्वसरूपान्करोति तथा विद्वांसो विज्ञानेन सर्वान् विज्ञायान्यान् प्रत्युपदिश्यानन्दन्ति ॥९॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जसा अग्नी पृथ्वी इत्यादी तेहतीस दिव्य पदार्थांना धारण करतो व व्यापक बनून त्यांचे आपल्यासारखे रूप बनवितो तसे विद्वान विज्ञानाने सर्वांना जाणून व इतरांना उपदेश करून आनंद देतात. ॥ ९ ॥