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ऋ॒तस्य॑ वा के॒शिना॑ यो॒ग्याभि॑र्घृत॒स्नुवा॒ रोहि॑ता धु॒रि धि॑ष्व। अथा व॑ह दे॒वान्दे॑व॒ विश्वा॑न्त्स्वध्व॒रा कृ॑णुहि जातवेदः॥

English Transliteration

ṛtasya vā keśinā yogyābhir ghṛtasnuvā rohitā dhuri dhiṣva | athā vaha devān deva viśvān svadhvarā kṛṇuhi jātavedaḥ ||

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Pad Path

ऋ॒तस्य॑। वा॒। के॒शिना॑। यो॒ग्याभिः॑। घृ॒त॒ऽस्नुवा॑। रोहि॑ता। धु॒रि। धि॒ष्व॒। अथ॑। व॒ह। दे॒वान्। दे॒व॒। विश्वा॑न्। सु॒ऽअ॒ध्व॒रा। कृ॒णु॒हि॒। जा॒त॒ऽवे॒दः॒॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:6» Mantra:6 | Ashtak:2» Adhyay:8» Varga:27» Mantra:1 | Mandal:3» Anuvak:1» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (जातवेदः) जो उत्पन्न हुए पदार्थों को जानता है वह हे (देव) दान देनेवाले विद्वान् ! आप (धुरि) धुरे पर (ऋतस्य) जल के (योग्याभिः) योग्य पृथिवियों से (केशिना) जिनमें बहुत सी किरणें विद्यमान वा (घृतस्नुवा) जो जल को चुआते (रोहिता) उन रत्न गुणवाले अश्वों को धुरे में (धिष्व) धरो लगाओ (वा) वा (स्वध्वरा) जिनसे सुन्दर यज्ञ होता उनको (कृणुहि) अच्छे प्रकार सिद्ध करो (अथ) इसके अनन्तर (विश्वान्) समस्त (देवान्) दिव्य गुणों को (आ, वह) प्राप्त करो ॥६॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जैसे ईश्वर ने सूर्य और बिजुली सबके चलानेवाले ब्रह्माण्ड में धरे स्थापन किये, वैसे तुम लोग अश्वादिकों को धारण करो और इस काम से समस्त गुणों को स्वीकार करो ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे जातवेदो देव ! त्वं धुरि ऋतस्य योग्याभिः केशिना घृतस्नुवा रोहिता धुरि धिष्व वा स्वध्वरा तान् कृणुहि। अथ विश्वान् देवानावह ॥६॥

Word-Meaning: - (ऋतस्य) जलस्य (वा) (केशिना) बहवः केशाः किरणा विद्यन्ते ययोस्तौ (योग्याभिः) पृथिवीभिः (घृतस्नुवा) यौ घृतमुदकं स्नुतः स्रावयतस्तौ (रोहिता) रत्नगुणविशिष्टावश्वौ (धुरि) (धिष्व) धेहि (अथ) (आ) (वह) प्रापय (देवान्) दिव्यान् गुणान् (देव) दातः (विश्वान्) अखिलान् (स्वध्वरा) सुष्ठु अध्वरो यज्ञो याभ्यान्तौ (कृणुहि) कुरु (जातवेदः) यो जातान् वेत्ति तत्सम्बुद्धौ ॥६॥
Connotation: - हे मनुष्या यथेश्वरेण सूर्यविद्युतौ सर्वस्य गमकौ ब्रह्माण्डे धृतौ तथा यूयमश्वादिकं धरत। अनेनाखिलान् गुणान् स्वीकुरुत ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो! जसे ईश्वराने सूर्य व विद्युत यांना चलायमान ब्रह्मांडात स्थापन केलेले आहे तसे तुम्ही अश्व इत्यादींना धारण करा व संपूर्ण दिव्य गुणांचा स्वीकार करा. ॥ ६ ॥