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अ॒न॒मी॒वास॒ इळ॑या॒ मद॑न्तो मि॒तज्ञ॑वो॒ वरि॑म॒न्ना पृ॑थि॒व्याः। आ॒दि॒त्यस्य॑ व्र॒तमु॑पक्षि॒यन्तो॑ व॒यं मि॒त्रस्य॑ सुम॒तौ स्या॑म॥

English Transliteration

anamīvāsa iḻayā madanto mitajñavo varimann ā pṛthivyāḥ | ādityasya vratam upakṣiyanto vayam mitrasya sumatau syāma ||

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Pad Path

अ॒न॒मी॒वासः॑। इळ॑या। मद॑न्तः। मि॒तऽज्ञ॑वः। वरि॑मन्। आ। पृ॒थि॒व्याः। आ॒दि॒त्यस्य॑। व्र॒तम्। उ॒प॒ऽक्षि॒यन्तः॑। व॒यम्। मि॒त्रस्य॑। सु॒ऽम॒तौ। स्या॒म॒॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:59» Mantra:3 | Ashtak:3» Adhyay:4» Varga:5» Mantra:3 | Mandal:3» Anuvak:5» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जैसे ब्रह्मचर्य्य से (अनमीवासः) शरीर और आत्मा के रोग से रहित (इळया) उत्तम प्रकार शिक्षित वाणी वा पृथिवी के राज्य से (मदन्तः) आनन्दित होते हुए (मितज्ञवः) और नपी जङ्घाओंवाले (पृथिव्याः) भूमि और (आदित्यस्य) सूर्य्य के (वरिमन्) बहुत शील और सत्य से युक्त (व्रतम्) क्षमा वा न्यायप्रकाश करनेवाले कर्म को (आ, उपक्षियन्तः) प्राप्त होते हुए (वयम्) हम लोग (मित्रस्य) सबके मित्र ईश्वर वा यथार्थवक्ता पुरुष की (सुमतौ) श्रेष्ठ आज्ञा वा बुद्धि में (स्याम) होवैं, वैसे आप लोग भी होओ ॥३॥
Connotation: - जो लोग परमेश्वर और यथार्थवक्ता पुरुषों के साथ मित्रता कर और क्षमा आदि विद्या न्याय के प्रकाश आदि गुणों का स्वीकार करके धर्मयुक्त मार्ग में वर्त्तमान हैं, वे ही परमेश्वर और यथार्थवक्ता पुरुषों के प्रिय होते हैं ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे मनुष्या यथा ब्रह्मचर्य्येणाऽनमीवास इळया मदन्तो मितज्ञवः पृथिव्या आदित्यस्य वरिमन् व्रतमोपक्षियन्तो वयं मित्रस्य सुमतौ स्याम तथा भवन्तोऽपि भवन्तु ॥३॥

Word-Meaning: - (अनमीवासः) शरीरात्मरोगरहिताः (इळया) सुशिक्षितया वाचा पृथिवीराज्येन वा (मदन्तः) आनन्दन्तः (मितज्ञवः) मितानि जानूनि येषान्ते (वरिमन्) बहुशीलसत्ययुक्तम् (आ) (पृथिव्याः) भूमेः (आदित्यस्य) सूर्य्यस्य (व्रतम्) क्षमां न्यायप्रकाशं वा कर्म (उपक्षियन्तः) उपनिवसन्तः (वयम्) (मित्रस्य) सर्वस्य सुहृद ईश्वरस्याऽऽप्तस्य वा (सुमतौ) उत्तमाज्ञायां प्रज्ञायां वा (स्याम) भवेम ॥३॥
Connotation: - ये परमेश्वरेणाऽऽप्तैस्सह सौहार्दं कृत्वा क्षमादिविद्यान्यायप्रकाशादिगुणान् स्वीकृत्य धर्म्ये पथि वर्त्तन्ते त एव परमेश्वरस्याप्तानां च प्रिया जायन्ते ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे लोक परमेश्वर व आप्त यांच्याबरोबर मैत्री करून क्षमा, विद्या, न्याय इ. गुणांचा स्वीकार करून धर्मयुक्त मार्गाने चालतात तेच परमेश्वर व आप्त पुरुषांना प्रिय असतात. ॥ ३ ॥