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इन्द्रः॒ सु पू॒षा वृष॑णा सु॒हस्ता॑ दि॒वो न प्री॒ताः श॑श॒यं दु॑दुह्रे। विश्वे॒ यद॑स्यां र॒णय॑न्त दे॒वाः प्र वोऽत्र॑ वसवः सु॒म्नम॑श्याम्॥

English Transliteration

indraḥ su pūṣā vṛṣaṇā suhastā divo na prītāḥ śaśayaṁ duduhre | viśve yad asyāṁ raṇayanta devāḥ pra vo tra vasavaḥ sumnam aśyām ||

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Pad Path

इन्द्रः॑। सु। पू॒षा। वृष॑णा। सु॒ऽहस्ता॑। दि॒वः। न। प्री॒ताः। श॒श॒यम्। दु॒दु॒ह्रे॒। विश्वे॑। यत्। अ॒स्या॒म्। र॒णय॑न्त। दे॒वाः। प्र। वः॒। अत्र॑। व॒स॒वः॒। सु॒म्नम्। अ॒श्या॒म्॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:57» Mantra:2 | Ashtak:3» Adhyay:4» Varga:2» Mantra:2 | Mandal:3» Anuvak:5» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब बुद्धिविषय को अगले मंत्र में कहते हैं।

Word-Meaning: - हे (वसवः) विद्या की जिज्ञासा करनेवाले (यत्) जो (अत्र) इस व्यवहार में (विश्वे) सम्पूर्ण (देवाः) विद्वान् लोग ! (अस्याम्) बुद्धि से युक्त वाणी में (शशयम्) मेघ के सदृश (सुम्नम्) सुख को (प्र, दुदुह्रे) दुहते हैं और (रणयन्त) संग्राम के सदृश आचरण करते हैं वे (दिवः) कामना करने योग्य प्रकाशकिरणों के (न) सदृश (प्रीताः) प्रसन्न होते हैं और जो (सुहस्ता) सुन्दर हाथोंवाले दो पुरुषों के समान जो (इन्द्रः) बिजुली और (पूषा) पुष्टिकर्त्ता प्राण (वृषणा) बल करनेवाले हैं उनको पूरा करते हैं वे (सु, प्रीताः) उत्तम प्रकार प्रसन्न होते हैं और जैसे सत्सङ्ग से (वः) तुम लोगों के समीप से (सुम्नम्) सुख को मैं (अश्याम्) प्राप्त होऊँ, वैसे आप लोग प्रयत्न करिये ॥२॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमावाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो शरीर और आत्मा के बल की कामना करते हैं, वे ही विद्वान् हो शास्त्र और ईश्वर के बोध से युक्त वाणी में रमते हुए बिजुली आदि की विद्या को प्रसिद्ध कर और विजयमान हो अतुल आनन्द को पाय अन्य जनों को पूर्ण आनन्द उत्पन्न करते, वे ही जगत् के पूज्य सबके गुरु होते हैं ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ बुद्धिविषयमाह।

Anvay:

हे वसवो यद्यत्र विश्वे देवा अस्यां शशयमिव सुम्नं प्रदुदुह्रे रणयन्त ते दिवो न प्रीता जायन्ते ये सुहस्तैवं याविन्द्रः पूषा वृषणा दुदुह्रे ते सुप्रीता भवन्ति यथा सत्सङ्गेन वस्सकाशात्सुम्नमहमश्यां तथा यूयं प्रयतत ॥२॥

Word-Meaning: - (इन्द्रः) विद्युत् (सु) (पूषा) पोषकः प्राणः (वृषणा) बलकरौ (सुहस्ता) शोभनौ हस्तौ ययोस्तद्वत् (दिवः) प्रकाशाः किरणाः कमनीयाः (न) इव (प्रीताः) प्रसन्नाः (शशयम्) खशयं मेघम्। अत्र वर्णव्यत्ययेन खस्य शः। (दुदुह्रे) दुहन्ति (विश्वे) सर्वे (यत्) ये (अस्याम्) प्रज्ञायुक्तायां वाचि (रणयन्त) रणः संग्राम इवाचरन्ति (देवाः) विद्वांसः (प्र) (वः) युष्माकम् (अत्र) अस्मिन् व्यवहारे (वसवः) विद्यां जिज्ञासवः (सुम्नम्) सुखम् (अश्याम्) प्राप्नुयाम् ॥२॥
Connotation: - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। ये शरीरात्मबलं कामयन्ते त एव विद्वांसो भूत्वा शास्त्रेश्वरबोधान्वितायां वाचि रममाणाः सन्तो विद्युदादिविद्यां प्रसिद्धीकृत्य विजयमाना भूत्वाऽतुलमानन्दं प्राप्याऽन्यान्पूर्णाऽऽनन्दाञ्जनयन्ति त एव जगत्पूज्याः सर्वगुरवो भवन्ति ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे शरीर व आत्मबलाची कामना करतात तेच विद्वान बनून शास्त्र व ईश्वराच्या बोधाने युक्त वाणीत रमून, विद्युत विद्या प्रसिद्ध करून विजयी होतात व अतुल आनंद प्राप्त करून इतरांना पूर्ण आनंद देतात तेच जगाचे पूजनीय गुरू असतात. ॥ २ ॥