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द्वि॒मा॒ता होता॑ वि॒दथे॑षु स॒म्राळन्वग्रं॒ चर॑ति॒ क्षेति॑ बु॒ध्नः। प्र रण्या॑नि रण्य॒वाचो॑ भरन्ते म॒हद्दे॒वाना॑मसुर॒त्वमेक॑म्॥

English Transliteration

dvimātā hotā vidatheṣu samrāḻ anv agraṁ carati kṣeti budhnaḥ | pra raṇyāni raṇyavāco bharante mahad devānām asuratvam ekam ||

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Pad Path

द्वि॒ऽमा॒ता। होता॑। वि॒दथे॑षु। स॒म्ऽराट्। अनु॑। अग्र॑म्। चर॑ति। क्षेति॑। बु॒ध्नः। प्र। रण्या॑नि। र॒ण्य॒ऽवाचः॑। भ॒र॒न्ते॒। म॒हत्। दे॒वाना॑म्। अ॒सु॒र॒ऽत्वम्। एक॑म्॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:55» Mantra:7 | Ashtak:3» Adhyay:3» Varga:29» Mantra:2 | Mandal:3» Anuvak:5» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

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Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जिस करके निर्माण किया गया (द्विमाता) दो वायु और आकाश हैं माता जिस सूर्य्य के वह (होता) लेने और देनेवाला (बुध्नः) अन्तरिक्ष निवास का स्थान विद्यमान है जिसका वह (विदथेषु) जानने योग्य पृथिवी आदिकों में (सम्राट्) जो उत्तम प्रकार प्रकाशमान है (अग्रम्) सबके मध्य केन्द्र स्थान जो कि ऊपर वर्त्तमान उसको (अनु, चरति) प्राप्त होता है वसता वा वसाता (रण्यानि) सुन्दर और लोकों में उत्पन्न हुओं को (प्र, क्षेति) वसता वा वसाता और जो (देवानाम्) विद्वानों में (महत्) बड़े (एकम्) सहायरहित (असुरत्वम्) प्राणों में रमनेवाले को (रण्यवाचः) रमणीय भाषाएँ (भरन्ते) धारण वा पोषण करती हैं, उस ही ब्रह्म की आप लोग सेवा करो ॥७॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जो जगदीश्वर सूर्य्य आदि जगत् को निर्माण धारण और प्रकाश करके पालन करता है और जो सर्वत्र वसता हुआ सबको अपने में वसाता है, जिस एक ही को यथार्थ बोलनेवाले विद्वान् लोग सेवते हैं, उस ही की सब लोग उपासना करो ॥७॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

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Anvay:

हे मनुष्या येन निर्मितो द्विमाता होता बुध्नो विदथेषु सम्राडग्रमनुचरति क्षेति रण्यानि प्र क्षेति यद्देवानां महदेकमसुरत्वं रण्यवाचो भरन्ते तदेव ब्रह्म यूयं सेवध्वम् ॥७॥

Word-Meaning: - (द्विमाता) द्वे वाय्वाकाशौ मातरौ यस्य सूर्य्यस्य सः (होता) आदाता दाता च (विदथेषु) विज्ञातव्येषु पृथिव्यादिषु (सम्राट्) यः सम्यग् राजते (अनु) (अग्रम्) सर्वेषां मध्यं केन्द्रं स्थानमुपरिस्थम् (चरति) गच्छति (क्षेति) निवसति निवासयति वा (बुध्नः) बुध्नमन्तरिक्षं निवासस्थानं विद्यते यस्य सः। अत्रार्षआदित्वादच्। (प्र) (रण्यानि) रमणीयानि लोकजातानि (रण्यवाचः) रमणीयभाषाः (भरन्ते) धरन्ति पुष्णन्ति वा (महत्) (देवानाम्) (असुरत्वम्) (एकम्) ॥७॥
Connotation: - हे मनुष्या यो जगदीश्वरस्सूर्य्यादिजगन्निर्माय धृत्वा प्रकाश्य पालयति, यः सर्वत्र वसन्त्सन्त्सर्वान्त्स्वस्मिन् वासयति यमेकमेवाप्ता विद्वांसः सेवन्ते तमेव सर्व उपासन्ताम् ॥७॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो! जो जगदीश्वर, सूर्य इत्यादी जगाला निर्माण करतो, धारण करतो व प्रकाशाद्वारे पालन करतो व जो सर्वत्र वास करून सर्वांना स्वतःमध्ये वसवितो, ज्याचे यथार्थवक्ते विद्वान लोक ग्रहण करतात त्याचीच सर्वांनी उपासना करावी. ॥ ७ ॥