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किं ते॑ कृण्वन्ति॒ कीक॑टेषु॒ गावो॒ नाशिरं॑ दु॒ह्रे न त॑पन्ति घ॒र्मम्। आ नो॑ भर॒ प्रम॑गन्दस्य॒ वेदो॑ नैचाशा॒खं म॑घवन्रन्धया नः॥

English Transliteration

kiṁ te kṛṇvanti kīkaṭeṣu gāvo nāśiraṁ duhre na tapanti gharmam | ā no bhara pramagandasya vedo naicāśākham maghavan randhayā naḥ ||

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Pad Path

किम्। ते॒। कृ॒ण्व॒न्ति॒। कीक॑टेषु। गावः॑। न। आ॒ऽशिर॑न्। दु॒ह्रे। न। त॒प॒न्ति॒। घ॒र्मम्। आ। नः॒। भ॒र॒। प्रऽम॑गन्दस्य। वेदः॑। नै॒चा॒ऽशा॒खम्। म॒घ॒ऽव॒न्। र॒न्ध॒य॒। नः॒॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:53» Mantra:14 | Ashtak:3» Adhyay:3» Varga:21» Mantra:4 | Mandal:3» Anuvak:4» Mantra:14


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब विद्वान् के विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

Word-Meaning: - हे विद्वान् ! (ते) आपके (कीकटेषु) अनार्य देशों में वसनेवालों में (गावः) गावों से (न) नहीं (आशिरम्) दुग्ध आदि को (दुह्रे) दुहते हैं (घर्मम्) दिन को (न) नहीं (तपन्ति) तपाते हैं वे (किम्) क्या (कृण्वन्ति) करते वा करेंगे और आप (नः) हम लोगों के लिये (प्रमगन्दस्य) जो कुलीन मुझको प्राप्त होता है उसके (वेदः) धन को (आ) सब प्रकार से (भर) धारण करिये और हे (मघवन्) श्रेष्ठ धन से युक्त आप (नः) हम लोगों के (नैचाशाखम्) नीची शक्ति जिसमें उसकी (रन्धय) निवृत्ति करो ॥१४॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे म्लेच्छ जनों में गौओं की, नास्तिक पुरुषों में धर्म आदि गुणों की वृद्धि नहीं होती और वैसे ही विद्वानों में ईश्वर को नहीं माननेवाले प्रबल न होवें, इससे चाहिये कि मनुष्यों में नास्तिकत्व को सर्वथा वारण करें ॥१४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ विद्वद्विषयमाह।

Anvay:

हे विद्वन् ! ते कीकटेषु गावो नाऽऽशिरं दुह्रे घर्मं न तपन्ति ते किं कृण्वन्ति त्वं नः प्रमगन्दस्य वेद आ भर। हे मघवँस्त्वं नो नैचाशाखं रन्धय ॥१४॥

Word-Meaning: - (किम्) (ते) तव (कृण्वन्ति) (कीकटेषु) अनार्य्यदेशनिवासिषु म्लेच्छेषु (गावः) धेनूः (न) (आशिरम्) यदस्य ते तत् क्षीरादिकम् (दुह्रे) दुहन्ति (न) (तपन्ति) (घर्मम्) दिनम्। घर्म इत्यहर्ना०। निघं०१। ९। (आ) समन्तात् (नः) अस्मभ्यम् (भर) धर (प्रमगन्दस्य) यः कुलीनो मां गच्छति स तस्य (वेदः) धनम् (नैचाशाखम्) नीचा शाखा शक्तिर्यस्मिँस्तम् (मघवन्) पूजितधनयुक्त (रन्धय) निवारय (नः) अस्माकम् ॥१४॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। यथा म्लेच्छेषु गावो न वर्द्धन्ते नास्तिकेषु धर्मादयो गुणाश्च, तथैव विद्वत्स्वनीश्वरवादिनः प्रबला न जायन्ते तस्माद्विद्वद्भिर्मनुष्येषु नास्तिकत्वं सर्वथा निवारणीयम् ॥१४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जशी म्लेंच्छ लोकांत गायीची, नास्तिक लोकांत धर्म इत्यादी गुणांची वाढ होत नाही, तसेच विद्वानांमध्ये ईश्वराला न मानणारे प्रबळ होऊ नयेत यासाठी विद्वानांनी माणसातील नास्तिकत्वाचे निवारण करावे. ॥ १४ ॥