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नृ॒णामु॑ त्वा॒ नृत॑मं गी॒र्भिरु॒क्थैर॒भि प्र वी॒रम॑र्चता स॒बाधः॑। सं सह॑से पुरुमा॒यो जि॑हीते॒ नमो॑ अस्य प्र॒दिव॒ एक॑ ईशे॥

English Transliteration

nṛṇām u tvā nṛtamaṁ gīrbhir ukthair abhi pra vīram arcatā sabādhaḥ | saṁ sahase purumāyo jihīte namo asya pradiva eka īśe ||

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Pad Path

नृ॒णाम्। ऊँ॒ इति॑। त्वा॒। नृऽत॑मम्। गीः॒ऽभिः। उ॒क्थैः। अ॒भि। प्र। वी॒रम्। अ॒र्च॒त॒। स॒ऽबाधः॑। सम्। सह॑से। पु॒रु॒ऽमा॒यः। जि॒ही॒ते॒। नमः॑। अ॒स्य॒। प्र॒ऽदिवः॑। एकः॑। ई॒शे॒॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:51» Mantra:4 | Ashtak:3» Adhyay:3» Varga:15» Mantra:4 | Mandal:3» Anuvak:4» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब प्रजा के प्रशंसा के विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

Word-Meaning: - हे विद्वान् जनो ! आप लोग जो (सबाधः) बोध के सहित वर्त्तमान (पुरुमायः) बहुत कार्यों का कर्त्ता (एकः) सहायरहित सेनाधिपति पुरुष (अस्य) इस (प्रदिवः) उत्तम प्रकाश का (ईशे) स्वामी है (सहसे) बल के लिये (नमः) अन्न वा सत्कार को (सम्, जिहीते) प्राप्त होता है उस (वीरम्) राजविद्या और बल से व्याप्त पुरुष का (प्र, अर्चत्) सत्कार करिये। और हे राजन् ! जो (गीर्भिः) वाणियों और (उक्थैः) प्रशंसा के वचनों से (नृणाम्) अग्रणी मनुष्यों के (नृतमम्) अत्यन्त नायक (त्वा) आपका सत्कार करें उनका (उ) ही आप सत्कार करिये ॥४॥
Connotation: - विद्वानों को चाहिये कि उस ही की प्रशंसा करें कि जो प्रशंसायोग्य कर्मों को करे ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ प्रजाप्रशंसाविषयमाह।

Anvay:

हे विद्वांसो यूयं यः सबाधः पुरुमाय एकः सेनेशोऽस्य प्रदिव ईशे सहसे नमः संजिहीते तं वीरं प्रार्चत। हे राजन् ये गीर्भिरुक्थैर्नृणां नृतमं त्वा सत्कुर्युस्तानु त्वमभ्यर्च ॥४॥

Word-Meaning: - (नृणाम्) नायकानां मनुष्याणाम् (उ) (त्वा) त्वाम् (नृतमम्) अतिशयेन नायकम् (गीर्भिः) वाग्भिः (उक्थैः) प्रशंसावचनैः (अभि) (प्र) (वीरम्) व्याप्तराजविद्याबलम् (अर्चत) सत्कुरुत। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (सबाधः) बाधेन सह वर्त्तमानः (सम्) (सहसे) बलाय (पुरुमायः) यः पुरून् बहून् मिनोति (जिहीते) प्राप्नोति (नमः) अन्नं संस्कारं वा (अस्य) (प्रदिवः) प्रकृष्टप्रकाशस्य (एकः) असहायः (ईशे) ईष्टे। आत्मनेपदेष्विति तलोपः ॥४॥
Connotation: - विद्वद्भिस्तस्यैव प्रशंसा कार्या यः प्रशंसाऽर्हाणि कर्माणि कुर्यात् ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - विद्वानांनी त्याचीच प्रशंसा करावी की जो प्रशंसायुक्त काम करतो. ॥ ४ ॥