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मि॒त्रो अ॒ग्निर्भ॑वति॒ यत्समि॑द्धो मि॒त्रो होता॒ वरु॑णो जा॒तवे॑दाः। मि॒त्रो अ॑ध्व॒र्युरि॑षि॒रो दमू॑ना मि॒त्रः सिन्धू॑नामु॒त पर्व॑तानाम्॥

English Transliteration

mitro agnir bhavati yat samiddho mitro hotā varuṇo jātavedāḥ | mitro adhvaryur iṣiro damūnā mitraḥ sindhūnām uta parvatānām ||

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Pad Path

मि॒त्रः। अ॒ग्निः। भ॒व॒ति॒। यत्। सम्ऽइ॑द्धः। मि॒त्रः। होता॑। वरु॑णः। जा॒तऽवे॑दाः। मि॒त्रः। अ॒ध्व॒र्युः। इ॒षि॒रः। दमू॑नाः। मि॒त्रः। सिन्धू॑नाम्। उ॒त। पर्व॑तानाम्॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:5» Mantra:4 | Ashtak:2» Adhyay:8» Varga:24» Mantra:4 | Mandal:3» Anuvak:1» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (यत्) जो (सिन्धूनाम्) नदियों (उत) और (पर्वतानाम्) बड़ी शिलाओं के बीच (समिद्धः) प्रदीप्त (अग्निः) अग्नि के समान (मित्रः) मित्र वा (होता) ग्रहण करनेहारे के तुल्य (मित्रः) मित्र वा (जातवेदाः) उत्पन्न हुए पदार्थों के जाननेवाले जगदीश्वर के समान (वरुणः) श्रेष्ठ वा (अध्वर्य्युः) अपने को अहिंसा धर्म की इच्छा करनेवाले के समान (मित्रः) मित्र वा (इषिरः) इच्छा करनेवाले (दमूनाः) दमनशील के समान (मित्रः) मित्र (भवति) होता है उसका सत्कार करिये ॥४॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे सूर्य्य नदी, शैल और ओषधि आदिकों को किरणों के द्वारा पुष्ट करने वा उनको सुखानेवाला होता है, वैसे मित्र जन धर्म में पुष्टिकारक और अधर्म से निवर्तक होते हैं ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे मनुष्या यद्यस्सिन्धूनामुत पर्वतानां समिद्धोऽग्निरिव मित्रो होतेव मित्रो जातवेदा इव वरुणोऽध्वर्य्युरिव मित्र इषिरो दमूना इव मित्रो भवति तं सत्कुरुत ॥४॥

Word-Meaning: - (मित्रः) सुहृत् (अग्निः) पावकइव (भवति) (यत्) यः (समिद्धः) प्रदीप्तः (मित्रः) (होता) आदातेव (वरुणः) वरः (जातवेदाः) यथा जातानां सर्वेषां पदार्थानां वेत्ता जगदीश्वरः (मित्रः) (अध्वर्युः) आत्मनोऽध्वरमहिंसाधर्ममिच्छुः (इषिरः) इच्छुः (दमूनाः) दमनशीलः (मित्रः) (सिन्धूनाम्) नदीनाम् (उत) अपि (पर्वतानाम्) शैलानाम् ॥४॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा सूर्यो नदीशैलौषध्यादीनां किरणद्वारा पोषकः शोषको वा भवति तथा सखायो धर्मे पोषका अधर्मे शोषका अर्थात् धर्मे प्रवर्त्तका अधर्मान् निवर्त्तका भवन्ति ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा सूर्य, नदी, पर्वत व औषधी इत्यादींना किरणांद्वारे पुष्ट करणारा किंवा शुष्क करणारा असतो तसे मित्र धर्मात पुष्टिकारक व अधर्माचे निवर्त्तक असतात. ॥ ४ ॥