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अधा॑य्य॒ग्निर्मानु॑षीषु वि॒क्ष्व१॒॑पां गर्भो॑ मि॒त्र ऋ॒तेन॒ साध॑न्। आ ह॑र्य॒तो य॑ज॒तः सान्व॑स्था॒दभू॑दु॒ विप्रो॒ हव्यो॑ मती॒नाम्॥

English Transliteration

adhāyy agnir mānuṣīṣu vikṣv apāṁ garbho mitra ṛtena sādhan | ā haryato yajataḥ sānv asthād abhūd u vipro havyo matīnām ||

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Pad Path

अधा॑यि। अ॒ग्निः। मानु॑षीषु। वि॒क्षु। अ॒पाम्। गर्भः॑। मि॒त्रः। ऋ॒तेन॑। साध॑न्। आ। ह॒र्य॒तः। य॒ज॒तः। सानु॑। अ॒स्था॒त्। अभू॑त्। ऊँ॒ इति॑। विप्रः॑। हव्यः॑। म॒ती॒नाम्॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:5» Mantra:3 | Ashtak:2» Adhyay:8» Varga:24» Mantra:3 | Mandal:3» Anuvak:1» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - जैसे विद्वानों ने (अपाम्) प्राणों को (गर्भः) गर्भ के समान होकर (अग्निः) अग्नि (मानुषीषु) मनुष्यसंबन्धी इन (विक्षु) प्रजाओं में (अधायि) धारण किया जाता वैसे (मतीनाम्) विशेष बुद्धिमानों का (मित्रः) मित्र जो (ऋतेन) सत्य से (साधन्) कार्य सिद्ध करता हुआ (हर्यतः) मनोहर (यजतः) संगम (हव्यः) और ग्रहण करने योग्य (विप्रः) बुद्धिमान् जन धारण किया हुआ है वह (उ) ही (सानु) विभाग करने योग्य पदार्थ की (आ, अस्थात्) प्रतिज्ञा करता और प्रसिद्ध (अभूत्) होता है ॥३॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! तुम जैसे ईश्वर ने अग्नि सकल प्रजा का प्रकाश करनेवाला स्थापित किया, वैसे विद्या और धर्म के प्रकाश करनेवाले विद्वानों को जानो ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

यथा विद्वद्भिरपां गर्भोऽग्निर्मानुषीषु विक्ष्वधायि तथा मतीनां मित्रो य ऋतेन साधन् हर्यतो यजतो हव्यो विप्रो धृतः स उ सान्वस्थादभूत् ॥३॥

Word-Meaning: - (अधायि) धीयते (अग्निः) (मानुषीषु) मनुष्याणामिमासु (विक्षु) प्रजासु (अपाम्) प्राणानाम् (गर्भः) गर्भइव भूत्वा (मित्रः) सुहृत् (ऋतेन) सत्येन (साधन्) अत्र विकरणव्यत्ययः। (आ) (हर्य्यतः) कमनीयः (यजतः) सङ्गन्तव्यः (सानु) संभजनीयम् (अस्थात्) तिष्ठेत् (अभूत्) भवेत् (उ) (विप्रः) (हव्यः) आदातुमर्हः (मतीनाम्) विपश्चिताम् ॥३॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या यूयं यथेश्वरेणाग्निः सकलप्रजाप्रकाशकः स्थापितस्तथा विद्याधर्मप्रकाशकान् विदुषो विजानीत ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो! ईश्वराने संपूर्ण प्रजेला प्रकाश देण्यासाठी जसा अग्नी निर्माण केलेला आहे तसे तुम्ही विद्या व धर्माचा प्रकाश करणाऱ्या विद्वानांना जाणा. ॥ ३ ॥