Go To Mantra

शंसा॑ म॒हामिन्द्रं॒ यस्मि॒न्विश्वा॒ आ कृ॒ष्टयः॑ सोम॒पाः काम॒मव्य॑न्। यं सु॒क्रतुं॑ धि॒षणे॑ विभ्वत॒ष्टं घ॒नं वृ॒त्राणां॑ ज॒नय॑न्त दे॒वाः॥

English Transliteration

śaṁsā mahām indraṁ yasmin viśvā ā kṛṣṭayaḥ somapāḥ kāmam avyan | yaṁ sukratuṁ dhiṣaṇe vibhvataṣṭaṁ ghanaṁ vṛtrāṇāṁ janayanta devāḥ ||

Mantra Audio
Pad Path

शंसा॑। म॒हाम्। इन्द्र॑म्। यस्मि॑न्। विश्वाः॑। आ। कृ॒ष्टयः॑। सो॒म॒ऽपाः। काम॑म्। अव्य॑न्। यम्। सु॒ऽक्रतु॑म्। धि॒षणे॑। वि॒भ्व॒ऽत॒ष्टम्। घ॒नम्। वृ॒त्राणा॑म्। ज॒नय॑न्त। दे॒वाः॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:49» Mantra:1 | Ashtak:3» Adhyay:3» Varga:13» Mantra:1 | Mandal:3» Anuvak:4» Mantra:1


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब पाँच ऋचावाले उञ्चासवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में प्रजा के विषय को कहते हैं।

Word-Meaning: - हे विद्वन् ! (यस्मिन्) जिसमें (विश्वाः) संपूर्ण (सोमपाः) ऐश्वर्य्य के पालन करनेवाले (कृष्टयः) मनुष्य (कामम्) अभिलाषा की (आ) सब प्रकार (अव्यन्) इच्छा करें (वृत्राणाम्) मेघों के (घनम्) समूह को (विभ्वतष्टम्) व्यापक परमेश्वर ने रचा (महाम्) श्रेष्ठ और सेवा करने योग्य (इन्द्रम्) राजा को (धिषणे) अन्तरिक्ष और पृथिवी को प्रकाशित करते हुए सूर्य्य के सदृश विद्या और नीति को प्रकाशित करते हुए (यम्) जिस (सुक्रतुम्) उत्तम कर्म करनेवाली बुद्धि से युक्त पुरुष को (देवाः) विद्वान् लोग (जनयन्त) उत्पन्न करते हैं, उस राजा की आप (शंस) स्तुति करिये ॥१॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे विद्वान् लोगो ! जैसे बड़ा एक सूर्य्य प्रत्येक भूगोल में वर्त्तमान मेघों को नाश करता और प्राणियों के सुख को उत्पन्न करता है, वैसे ही राजा जन दुष्ट पुरुषों का नाश और श्रेष्ठ पुरुषों की इच्छा पूर्ण करके आनन्द देता है ॥१॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ प्रजाविषयमाह।

Anvay:

हे विद्वन् ! यस्मिन् विश्वाः सोमपाः कृष्टयः काममाव्यन् वृत्राणां घनं विभ्वतष्टं महामिन्द्रं धिषणे प्रकाशयन्तं सूर्य्यमिव विद्यानीती प्रकाशय यं सुक्रतुं देवा जनयन्त तं राजानं त्वं शंस ॥१॥

Word-Meaning: - (शंस) स्तुहि। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (महाम्) महान्तं पूजनीयम् (इन्द्रम्) राजानम् (यस्मिन्) (विश्वाः) समग्राः (आ) समन्तात् (कृष्टयः) मनुष्याः (सोमपाः) ऐश्वर्य्यपालकाः (कामम्) अभिलाषम् (अव्यन्) कामयन्ताम् (यम्) (सुक्रतुम्) शोभनकर्मकर्त्तृप्रज्ञम् (धिषणे) द्यावापृथिव्याविव विद्यानीती (विभ्वतष्टम्) विभुना जगदीश्वरेण निर्मितम् (घनम्) घनीभूतम् (वृत्राणाम्) मेघानाम् (जनयन्त) जनयन्ति (देवाः) विद्वांसः ॥१॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे विद्वांसो ! यथा महानेकः सूर्य्यः प्रत्येकभूगोले स्थितान् मेघान् हन्ति प्राणिनां सुखं जनयति तथैव राजा दुष्टान् हत्वा श्रेष्ठानामिच्छां प्रपूर्य्याऽऽनन्दयति ॥१॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात प्रजा व राजा यांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्तात अर्थाची मागील सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे विद्वानांनो! जसा प्रत्येक भूगोलात एक मोठा सूर्य असून मेघांचा नाश करतो व प्राण्यांना सुख देतो. तसेच राजा दुष्ट पुरुषांचा नाश व श्रेष्ठ पुरुषांची इच्छा पूर्ण करून आनंद देतो. ॥ १ ॥