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उ॒प॒स्थाय॑ मा॒तर॒मन्न॑मैट्ट ति॒ग्मम॑पश्यद॒भि सोम॒मूधः॑। प्र॒या॒वय॑न्नचर॒द्गृत्सो॑ अ॒न्यान्म॒हानि॑ चक्रे पुरु॒धप्र॑तीकः॥

English Transliteration

upasthāya mātaram annam aiṭṭa tigmam apaśyad abhi somam ūdhaḥ | prayāvayann acarad gṛtso anyān mahāni cakre purudhapratīkaḥ ||

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Pad Path

उ॒प॒ऽस्थाय॑। मा॒तर॑म्। अन्न॑म्। ऐ॒ट्ट॒। ति॒ग्मम्। अ॒प॒श्य॒त्। अ॒भि। सोम॑म्। ऊधः॑। प्र॒ऽय॒वय॑न्। अ॒च॒र॒त्। गृत्सः॑। अ॒न्यान्। म॒हानि॑। च॒क्रे॒। पु॒रु॒धऽप्र॑तीकः॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:48» Mantra:3 | Ashtak:3» Adhyay:3» Varga:12» Mantra:3 | Mandal:3» Anuvak:4» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

Word-Meaning: - जो (गृत्सः) बुद्धिमान् (पुरुधप्रतीकः) बहुतों को धारण करनेवालों के प्रति प्राप्त होनेवाला सूर्य्य (ऊधः) प्रातःकाल की रात्रि को जैसे वैसे (मातरम्) पुत्र की माता को (उपस्थाय) समीप प्राप्त होकर (अन्नम्) खाने योग्य पदार्थ की (ऐट्ट) प्रशंसा करे और (प्रयावयन्) संयोग वा विभाग करता हुआ (सोमम्) ऐश्वर्य्य को (अभि) चारों ओर से (अपश्यत्) देखे और (अन्यान्) औरों को (अचरत्) आचरण करे (महानि) बड़े सन्तानों को (चक्रे) उत्पन्न करे, वही राजा होने योग्य है ॥३॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे सूर्य प्रातःकाल की रात्रि को प्राप्त होकर दिन को उत्पन्न करता है, वैसे ही सन्तान की माता को सन्तान का पिता प्राप्त होकर गर्भस्थिति करे और वैसे ही संस्कारों को माता और पिता करें कि जैसे सन्तान उत्तम गुण, कर्म, लक्षण,स्वभावों से युक्त राजकर्मों को करने योग्य होवें ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

यो गृत्सः पुरुधप्रतीकः सूर्य्य ऊधइव मातरमुपस्थायान्नमैट्ट प्रयावयन् सन् तिग्मं सोममभ्यपश्यदन्यानचरन्महानि चक्रे स एव राजा भवितुमर्हेत् ॥३॥

Word-Meaning: - (उपस्थाय) सामीप्यं प्राप्य (मातरम्) जननीम् (अन्नम्) अत्तुं योग्यम् (ऐट्ट) प्रशंसेत (तिग्मम्) तीव्रम् (अपश्यत्) पश्येत् (अभि) आभिमुख्ये (सोमम्) ऐश्वर्य्यम् (ऊधः) यथोषाः (प्रयावयन्) संयोजयन् विभाजयन् वा (अचरत्) आचरेत् (गृत्सः) मेधावी (अन्यान्) (महानि) महान्त्यपत्यानि (चक्रे) कुर्य्यात् (पुरुधप्रतीकः) पुरुन् बहून् दधाति ते पुरुधा यः पुरुधान् प्रत्यायेति सः ॥३॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा सूर्य्य उषसं प्राप्य दिनं जनयति तथैवाऽपत्यमातरं सन्तानपितोपस्थाय गर्भमादधेत तथैव संस्कारान्मातापितरौ विदधेयातां यथाऽपत्यानि शुभगुणकर्मलक्षणस्वभावानि राजकर्माणि कर्त्तुमर्हेयुः ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा सूर्य उषेनंतर दिवस उत्पन्न करतो. तसेच माता व पिता यांनी संतानाला जन्म द्यावा. माता व पिता यांनी संस्कार करावेत. ज्यामुळे संतान उत्तम गुण, कर्म, लक्षण स्वभावाने युक्त राजकार्य करण्यायोग्य बनेल. ॥ ३ ॥