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स॒द्यो ह॑ जा॒तो वृ॑ष॒भः क॒नीनः॒ प्रभ॑र्तुमाव॒दन्ध॑सः सु॒तस्य॑। सा॒धोः पि॑ब प्रतिका॒मं यथा॑ ते॒ रसा॑शिरः प्रथ॒मं सो॒म्यस्य॑॥

English Transliteration

sadyo ha jāto vṛṣabhaḥ kanīnaḥ prabhartum āvad andhasaḥ sutasya | sādhoḥ piba pratikāmaṁ yathā te rasāśiraḥ prathamaṁ somyasya ||

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Pad Path

स॒द्यः। ह॒। जा॒तः। वृ॒ष॒भः। क॒नीनः॑। प्रऽभ॑र्तुम्। आ॒व॒त्। अन्ध॑सः। सु॒तस्य॑। सा॒धोः। पि॒ब॒। प्र॒ति॒ऽका॒मम्। यथा॑। ते॒। रस॑ऽआशिरः। प्र॒थ॒मम्। सो॒म्यस्य॑॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:48» Mantra:1 | Ashtak:3» Adhyay:3» Varga:12» Mantra:1 | Mandal:3» Anuvak:4» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब पाँच ऋचावाले अड़तालीसवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में राजा के विषय को कहते हैं।

Word-Meaning: - हे राजन् ! (यथा) जैसे (सद्यः) शीघ्र (जातः) उत्पन्न हुआ (वृषभः) वृष्टि करनेवाला (कनीनः) प्रकाशवान् (रसाशिरः) रसों का भोजन करनेवाला सूर्य्य (अन्धसः) अन्न के (सुतस्य) उत्तम प्रकार संस्कार युक्त (सोम्यस्य) ऐश्वर्य्य में उत्पन्न का (प्रथमम्) प्रथम (आवत्) रक्षा करे उस प्रकार के आप (प्रतिकामम्) कामना-कामना के प्रति ओषधियों के रस को (पिब) पान करो और इस प्रकार के (साधोः) उत्तम मार्गों में वर्त्तमान (ते) आपका (ह) निश्चय से प्रजाओं को (प्रभर्त्तुम्) प्रकर्षता से धारण करने को सामर्थ्य होवे ॥१॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। हे राजा आदि मनुष्यों ! जैसे सूर्य्य आदि पदार्थ अपने प्रतापों और ईश्वर के नियोग से सब पदार्थों की रक्षा करके दोषों का नाश करते हैं, वैसे ही साधु पुरुषों की रक्षा करके दुष्ट पुरुषों का नाश करें ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ राज्ञो विषयमाह।

Anvay:

हे राजन् ! यथा सद्यो जातो वृषभः कनीनो रसाशिरः सूर्योऽन्धसः सुतस्य सोम्यस्य प्रथममावत्तथाभूतस्त्वं प्रतिकामं सोमं पिबैवं भूतस्य साधोस्ते ह प्रजाः प्रभर्त्तुं शक्तिर्जायेत ॥१॥

Word-Meaning: - (सद्यः) (ह) खलु (जातः) उत्पन्नः (वृषभः) वर्षकः (कनीनः) दीप्तिमान् (प्रभर्त्तुम्) प्रकर्षेण धर्त्तुम् (आवत्) रक्षेत् (अन्धसः) अन्नस्य (सुतस्य) सुसंस्कृतस्य (साधोः) सन्मार्गे स्थितस्य (पिब) (प्रतिकामम्) कामं कामं प्रति (यथा) (ते) तव (रसाशिरः) यो रसानश्नाति सः (प्रथमम्) (सोम्यस्य) सोम ऐश्वर्ये भवस्य ॥१॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। हे राजादयो मनुष्या ! यथा सूर्यादयः पदार्थाः स्वप्रभावैरीश्वरनियोगेन सर्वान् पदार्थान् रक्षित्वा दोषान् घ्नन्ति तथैव साधून्रक्षित्वा दुष्टान् हन्युः ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात राजधर्म संतानोत्पत्ती व राज्यपालन इत्यादी गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे राजा इत्यादींनो! जसे सूर्य इत्यादी पदार्थ आपल्या पुरुषार्थाने व ईश्वराच्या आश्रयाने सर्व पदार्थांचे रक्षण करून दोषांचा नाश करतात तसेच साधूंचे रक्षण करून दुष्टांचा नाश करावा. ॥ १ ॥