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ये त्वा॑हि॒हत्ये॑ मघव॒न्नव॑र्ध॒न्ये शा॑म्ब॒रे ह॑रिवो॒ ये गवि॑ष्टौ। ये त्वा॑ नू॒नम॑नु॒मद॑न्ति॒ विप्राः॒ पिबे॑न्द्र॒ सोमं॒ सग॑णो म॒रुद्भिः॑॥

English Transliteration

ye tvāhihatye maghavann avardhan ye śāmbare harivo ye gaviṣṭau | ye tvā nūnam anumadanti viprāḥ pibendra somaṁ sagaṇo marudbhiḥ ||

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Pad Path

ये। त्वा॒। अ॒हि॒ऽहत्ये॑। म॒घ॒ऽव॒न्। अव॑र्धन्। ये। शा॒म्ब॒रे। ह॒रि॒वः॒। ये। गोऽइ॑ष्टौ। ये। त्वा॒। न्न॒म्। अ॒नु॒ऽमद॑न्ति। विप्राः॑। पिब॑। इ॒न्द्र॒। सोम॑म्। सऽग॑णः। म॒रुत्ऽभिः॑॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:47» Mantra:4 | Ashtak:3» Adhyay:3» Varga:11» Mantra:4 | Mandal:3» Anuvak:4» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर राजा के विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

Word-Meaning: - हे (हरिवः) उत्तम घोड़ों से युक्त (मघवन्) श्रेष्ठ बहुत धनोंवाले (इन्द्र) ऐश्वर्य के कर्त्ता ! (ये) जो (विप्राः) बुद्धिमान् लोग (त्वा) आपको (मरुद्भिः) पवनों के सदृश अपने मित्रों के साथ सूर्य (अहिहत्ये) मेघ का नाश हो जिसमें ऐसे (शाम्बरे) मेघसम्बन्धी संग्राम में जैसे वैसे (अवर्धन्) वृद्धि करें और (ये) जो (गविष्टौ) किरणों के समूह में आपकी वृद्धि करें (ये) जो युद्ध में (नूनम्) निश्चित (अनु, मदन्ति) अनुकूलता से आनन्द देते हैं उन पवनों के सदृश मित्रों के और (सगणः) वीर पुरुषों के सहित (सोमम्) ओषधियों से उत्पन्न हुए घृत दुग्ध आदि रसों का (पिब) पान कीजिये ॥४॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे नहीं बढ़े हुए मेघ को सूर्य बढ़ाय के और बढ़े हुए का नाश करता है, वैसे ही धार्मिक राजा आदि पुरुष धार्मिक शान्त पुरुषों की रक्षा और दुष्ट पुरुषों का नाश कर स्वयं प्रसन्न होकर प्रजाओं को प्रसन्न करें ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुना राजविषयमाह।

Anvay:

हे हरिवो मघवन्निन्द्र ! ये विप्रास्त्वा त्वां मरुद्भिः सह सूर्य्योऽहिहत्ये शाम्बरइवाऽवर्द्धन् ये गविष्टौ त्वा त्वामवर्धन् ये युद्धे नूनमनुमदन्ति ये च सर्वान्रक्षन्त्यानन्दयन्ति तैः मरुद्भिः सह सगणः सन् सोमं पिब ॥४॥

Word-Meaning: - (ये) (त्वा) त्वाम् (अहिहत्ये) अहेर्मेघस्य हत्या हननं यस्मिँस्तस्मिन् (मघवन्) पूजितपुष्कलधनयुक्त (अवर्धन्) वर्धयेयुः (ये) (शाम्बरे) शम्बरस्याऽयं सङ्ग्रामस्तस्मिन् (हरिवः) प्रशस्ता हरयो विद्यन्ते यस्य तत्सम्बुद्धौ (ये) (गविष्टौ) गवां किरणानां सङ्गमने (ये) (त्वा) त्वाम् (नूनम्) निश्चितम् (अनुमदन्ति) आनुकूल्येनाऽऽनन्दयन्ति (विप्राः) मेधाविनः (पिब) (इन्द्र) ऐश्वर्य्यकारक (सोमम्) ओषधिजन्यं घृतदुग्धादिकं रसम् (सगणः) गणेन वीरसमूहेन सहितः (मरुद्भिः) आयुभिरिव स्वमित्रैः सह ॥४॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथाऽनुन्मदं मेघं सूर्यो वर्द्धयित्योन्मदं हन्ति तथैव धार्मिका राजादयो धार्मिकाञ्छान्तान् रक्षित्वा दुष्टान् हत्वा स्वयं प्रसन्ना भूत्वा प्रजा अनुमदन्तु।
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा सूर्य मेघ उत्पन्न करतो व त्याचा नाश करतो तसेच धार्मिक राजा इत्यादींनी धार्मिक शांत पुरुषांचे रक्षण करावे व दुष्ट पुरुषांचा नाश करून स्वतः प्रसन्न बनून प्रजेला प्रसन्न करावे. ॥ ४ ॥