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उ॒त ऋ॒तुर्भि॑र्ऋतुपाः पाहि॒ सोम॒मिन्द्र॑ दे॒वेभिः॒ सखि॑भिः सु॒तं नः॑। याँ आभ॑जो म॒रुतो॒ ये त्वान्वह॑न्वृ॒त्रमद॑धु॒स्तुभ्य॒मोजः॑॥

English Transliteration

uta ṛtubhir ṛtupāḥ pāhi somam indra devebhiḥ sakhibhiḥ sutaṁ naḥ | yām̐ ābhajo maruto ye tvānv ahan vṛtram adadhus tubhyam ojaḥ ||

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Pad Path

उ॒त। ऋ॒तुऽभिः॑। ऋ॒तु॒ऽपाः। पा॒हि॒। सोम॑म्। इन्द्र॑। दे॒वेभिः॑। सखि॑ऽभिः। सु॒तम्। नः॒। यान्। आ। अभ॑जः। म॒रुतः॑। ये। त्वा। अनु॑। अह॑न्। वृ॒त्रम्। अद॑धुः। तुभ्य॑म्। ओजः॑॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:47» Mantra:3 | Ashtak:3» Adhyay:3» Varga:11» Mantra:3 | Mandal:3» Anuvak:4» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब सूर्य्य के विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) दुःख के नाशकर्त्ता पुरुष ! आप (ऋतुभिः) वसन्त आदि ऋतुओं के साथ (ऋतुपाः) ऋतुओं की रक्षा करनेवाले सूर्य के सदृश (देवेभिः) विद्वान् (सखिभिः) मित्रों के साथ (सुतम्) उत्पन्न (सोमम्) संसार की (पाहि) रक्षा करो और (यान्) जिन (मरुतः) मरण धर्मवाले मनुष्य (नः) हम लोगों का आप (आ) सब प्रकार (अभजः) सेवन करें (ये) जो लोग (तुभ्यम्) आपके लिये (ओजः) पराक्रम और (वृत्रम्) सब सुखों के कर्त्ता धन को (त्वा) और आपको (अनु, अदधुः) अनुकूलता से धारण करें उनकी आप रक्षा कीजिये (उत) और भी जैसे सूर्य मेघ का (अहन्) नाश करता है, वैसे शत्रुओं का नाश करिये ॥३॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे राजा आदि मनुष्यों ! जैसे सूर्य्य वसन्त आदि ऋतुओं से सम्पूर्ण जगत् की रक्षा करता जलादि रसों का आकर्षण और पुनः वृष्टि करके पालन करता है, वैसे ही विद्वान् मित्रों के साथ विचार करके विजय और पुरुषार्थ से सबकी रक्षा कीजिये ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ सूर्य्यविषयमाह।

Anvay:

हे इन्द्र ! त्वमृतुभिस्सहर्त्तुपाः सूर्य इव देवेभिः सखिभिः सह सुतं सोमं पाहि यान् महतो नोऽस्माँस्त्वमाभजो ये तुभ्यमोजो वृत्रं त्वा त्वां चान्वदधुस्तांस्त्वं पाहि उतापि यथा सूर्यो वृत्रमहँस्तथा शत्रून् हिन्धि ॥३॥

Word-Meaning: - (उत) अपि (ऋतुभिः) वसन्तादिभिः (ऋतुपाः) य ऋतून् पाति रक्षति स सूर्य्यः (पाहि) रक्ष (सोमम्) सूयन्ते यस्मिँस्तं संसारम् (इन्द्र) दुःखविदारक (देवेभिः) विद्वद्भिः (सखिभिः) सुहृद्भिः (सुतम्) निष्पन्नम् (नः) अस्मान् (यान्) (आ) समन्तात् (अभजः) सेवस्व (मरुतः) मरणधर्ममनुष्यान् (ये) (त्वा) त्वाम् (अनु) (अहन्) हन्ति (वृत्रम्) सर्वसुखकरं धनम् (अदधुः) दध्युः (तुभ्यम्) (ओजः) बलम् ॥३॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे राजादयो मनुष्याः ! यथा सूर्य्यो वसन्तादिभिः सर्वं जगद्रक्षति जलादिकमाकृष्य वर्षित्वा पाति तथैव विद्वद्भिर्मित्रैः सह विचार्य विजयपुरुषार्थाभ्यां सर्वान् रक्षन्तु ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे राजा इत्यादींनो! जसा सूर्य वसंत इत्यादी ऋतूंनी संपूर्ण जगाचे रक्षण करतो, जल इत्यादी रसांचे आकर्षण व पुन्हा वृष्टी करून पालन करतो तसेच तुम्ही विद्वान मित्रांबरोबर विचार करून विजय प्राप्त करून पुरुषार्थाने सर्वांचे रक्षण करा. ॥ ३ ॥