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यं सोम॑मिन्द्र पृथि॒वीद्यावा॒ गर्भं॒ न मा॒ता बि॑भृ॒तस्त्वा॒या। तं ते॑ हिन्वन्ति॒ तमु॑ ते मृजन्त्यध्व॒र्यवो॑ वृषभ॒ पात॒वा उ॑॥

English Transliteration

yaṁ somam indra pṛthivīdyāvā garbhaṁ na mātā bibhṛtas tvāyā | taṁ te hinvanti tam u te mṛjanty adhvaryavo vṛṣabha pātavā u ||

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Pad Path

यम्। सोम॑म्। इ॒न्द्र॒। पृ॒थि॒वीद्यावा॑। गर्भ॑म्। न। मा॒ता। बि॒भृ॒तः। त्वा॒ऽया। तम्। ते॒। हि॒न्व॒न्ति॒। तम्। ऊँ॒ इति॑। ते॒। मृ॒ज॒न्ति॒। अ॒ध्व॒र्यवः॑। वृ॒ष॒भ॒। पात॒वै। ऊँ॒ इति॑॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:46» Mantra:5 | Ashtak:3» Adhyay:3» Varga:10» Mantra:5 | Mandal:3» Anuvak:4» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

Word-Meaning: - हे (वृषभ) बलिष्ठ (इन्द्र) ऐश्वर्य से युक्त करनेवाले ! जो (त्वाया) आपको प्राप्त हुई (पृथिवीद्यावा) भूमि और बिजुली (माता) माता (गर्भम्) गर्भ को (न) जैसे वैसे (यम्) जिस (सोमम्) ऐश्वर्य को (बिभृतः) धारण करते हैं (तम्) उसको (ते) तुम्हारे लिये जो (हिन्वन्ति) वृद्धि करते हैं (तम्, उ) उसीको (ते) आपके लिये जो (अध्वर्यवः) अपनी हिंसा नहीं चाहते हुए बढ़ाते हैं वा तुम्हारे लिये उसीको जो लोग (मृजन्ति) शुद्ध करते हैं उनकी (उ) ही (पातवै) रक्षा के लिये आप उद्युक्त होइये ॥५॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो विद्वान् लोग पृथिवी और सूर्य्य के सदृश सबको विद्या और बल से बढ़ाते और उत्तम शिक्षा से पवित्र करते वे माता के सदृश पालन करनेवाले हैं, ऐसा जानकर वे सब लोगों से सत्कार करने योग्य हैं ॥५॥ इस सूक्त में राजा बिजुली और पृथिवी आदिकों के गुण वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्त के अर्थ के साथ संगति जाननी चाहिये ॥ यह छयालीसवाँ सूक्त और दशवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे वृषभेन्द्र ! ये त्वाया पृथिवीद्यावा माता गर्भं न यं सोमं बिभृतस्तं ते ये हिन्वन्ति तमु ते येऽध्वर्यवो हिन्वन्त्यु ते ये मृजन्ति तानु पातवै त्वमुद्युक्तो भव ॥५॥

Word-Meaning: - (यम्) (सोमम्) ऐश्वर्य्यम् (इन्द्र) ऐश्वर्ययोजक (पृथिवीद्यावा) भूमिविद्युतौ (गर्भम्) (न) इव (माता) (बिभृतः) धरतः (त्वाया) त्वां प्राप्ते (तम्) (ते) तुभ्यम् (हिन्वन्ति) वर्द्धयन्ति (तम्) (उ) (ते) तुभ्यम् (मृजन्ति) शुन्धन्ति (अध्वर्यवः) आत्मनोऽध्वरमहिंसां कामयमानाः (वृषभ) बलिष्ठ (पातवै) पातुं रक्षितुम् (उ) ॥५॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। ये विद्वांसो पृथिवीवत्सूर्यवत् सर्वान् विद्याबलाभ्यां वर्धयन्ति सुशिक्षया शुन्धन्ति ते मातृवत्पालकाः सन्तीति मत्वा सर्वैः सत्कर्त्तव्या इति ॥५॥ अत्र राजविद्युत्पृथिव्यादिगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति षट्चत्वारिंशत्तमं सूक्तं दशमो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे विद्वान लोक पृथ्वी व सूर्याप्रमाणे सर्वांना विद्या व बलाने वाढवितात व उत्तम शिक्षणाने पवित्र करतात ते मातेप्रमाणे पालन करणारे असतात असे जाणून सर्व लोकांनी त्यांचा सत्कार करावा. ॥ ५ ॥