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म॒हाँ अ॑सि महिष॒ वृष्ण्ये॑भिर्धन॒स्पृदु॑ग्र॒ सह॑मानो अ॒न्यान्। एको॒ विश्व॑स्य॒ भुव॑नस्य॒ राजा॒ स यो॒धया॑ च क्ष॒यया॑ च॒ जना॑न्॥

English Transliteration

mahām̐ asi mahiṣa vṛṣṇyebhir dhanaspṛd ugra sahamāno anyān | eko viśvasya bhuvanasya rājā sa yodhayā ca kṣayayā ca janān ||

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Pad Path

म॒हान्। अ॒सि॒। म॒हि॒ष॒। वृष्ण्ये॑भिः। ध॒न॒ऽस्पृत्। उ॒ग्र॒। सह॑मानः। अ॒न्यान्। एकः॑। विश्व॑स्य। भुव॑नस्य। राजा॑। सः। यो॒धया॑। च॒। क्ष॒यया॑। च॒। जना॑न्॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:46» Mantra:2 | Ashtak:3» Adhyay:3» Varga:10» Mantra:2 | Mandal:3» Anuvak:4» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

Word-Meaning: - हे (महिष) अत्यन्त आदर करने योग्य ! (उग्र) बल आदिकों से युक्त और (राजन्) प्रकाशित जिससे आप (वृष्ण्येभिः) बलवान् पुरुषों में उत्पन्न गुणों के साथ (महान्) श्रेष्ठ गुणों से युक्त और (धनस्पृत्) धन के सेवक (एकः) सहायरहित (अन्यान्) शत्रुओं को (सहमानः) सहते हुए (विश्वस्य) सम्पूर्ण (भुवनस्य) प्राणियों के निवास के स्थान के श्रेष्ठगुणों से युक्त (राजा) (असि) हैं (सः) वह आप (जनान्) प्रसिद्ध वीरों को (योधय) लड़ाइये शत्रुओं को (क्षयय) पराजय को पहुँचाइये (च) और सज्जनों को अपने देश में बसाइये ॥२॥
Connotation: - जो लोग शरीर और आत्मा का पूर्ण बल करके शत्रुओं को निवारण करते और सज्जनों का सत्कार करके आनन्द देते हैं, वे श्रेष्ठ होते हैं ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे महिषोग्र राजन् ! यतस्त्वं वृष्ण्येभिः सह महान् धनस्पृदेकोऽन्यान् सहमानो विश्वस्य भुवनस्य महान् राजासि स त्वं जनान् योधय च क्षयय शत्रून् पराजयं प्रापय सज्जनान् निवासय ॥२॥

Word-Meaning: - (महान्) महागुणविशिष्टः (असि) (महिष) पूजनीयतम (वृष्ण्येभिः) वृषेषु बलिष्ठेषु भवैर्गुणैः (धनस्पृत्) यो धनं स्पृणोति सेवते सः (उग्र) बलादियुक्त (सहमानः) (अन्यान्) शत्रून् (एकः) असहायः (विश्वस्य) समग्रस्य (भुवनस्य) भूताधिकरणस्य (राजा) प्रकाशमानः (सः) (योधय)। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (च) (क्षयय) क्षायय निवासय पराजयं प्रापय वा। अत्रापि संहितायामिति दीर्घः। (च) (जनान्) प्रसिद्धान् वीरान् ॥२॥
Connotation: - ये शरीरात्मनोः पूर्णं बलं कृत्वा शत्रून् निवारयन्ति सज्जनान् सत्कृत्याऽऽनन्दन्ति ते महान्तो भवन्ति ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे लोक शरीर व आत्म्याचे बल पूर्ण करून शत्रूंचे निवारण करतात व सज्जनांचा सत्कार करून आनंद मिळवितात ते श्रेष्ठ असतात. ॥ २ ॥