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आ या॑हि पू॒र्वीरति॑ चर्ष॒णीराँ अ॒र्य आ॒शिष॒ उप॑ नो॒ हरि॑भ्याम्। इ॒मा हि त्वा॑ म॒तयः॒ स्तोम॑तष्टा॒ इन्द्र॒ हव॑न्ते स॒ख्यं जु॑षा॒णाः॥

English Transliteration

ā yāhi pūrvīr ati carṣaṇīr ām̐ arya āśiṣa upa no haribhyām | imā hi tvā matayaḥ stomataṣṭā indra havante sakhyaṁ juṣāṇāḥ ||

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Pad Path

आ। या॒हि॒। पू॒र्वीः। अति॑। च॒र्ष॒णीः। आ। अ॒र्यः। आ॒ऽशिषः॑। उप॑। नः॒। हरि॑ऽभ्याम्। इ॒माः। हि। त्वा॒। म॒तयः॑। स्तोम॑ऽतष्टाः। इन्द्र॑। हव॑न्ते। स॒ख्यम्। जु॒षा॒णाः॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:43» Mantra:2 | Ashtak:3» Adhyay:3» Varga:7» Mantra:2 | Mandal:3» Anuvak:4» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब मित्रता के गुण के विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) बहुत ऐश्वर्य्यों के देनेवाले ! जो (इमाः) इन वर्त्तमान (स्तोमतष्टाः) विस्तारयुक्त स्तुतियों से विशिष्ट और (सख्यम्) मित्रता का (जुषाणाः) सेवन करती हुई (मतयः) बुद्धियाँ (त्वा) आपको (आ, हवन्ते) ग्रहण करती हैं उनके साथ (नः) हम लोगों को (आ) सब प्रकार (याहि) प्राप्त हूजिये, जिस प्रकार (अर्य्यः) स्वामी (चर्षणीः) मनुष्य आदि प्रजाओं को प्राप्त होकर (आशिषः) आशीर्वादों को प्राप्त होता है वैसे उन (पूर्वीः) प्राचीन काल में उत्पन्न हुई आशिषों को (हि) ही (हरिभ्याम्) वायु और अग्नि से (अति, आ) सब ओर से अत्यन्त प्राप्त हूजिये ॥२॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो! जिस बुद्धि से सब लोगों के साथ मित्रता हो, उससे युक्त हुए सबके आशीर्वादों को प्राप्त होकर सुख को निरन्तर प्राप्त होइये ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ मित्रतागुणविषयमाह।

Anvay:

हे इन्द्र ! या इमाः स्तोमतष्टाः सख्यं जुषाणा मतयस्त्वाऽऽहवन्ते ताभिः सह नोऽस्मानायाहि। यथार्य्यश्चर्षणीः प्राप्याऽऽशिष उपलभते तथा ताः पूर्वीर्हि हरिभ्यामत्यायाहि ॥२॥

Word-Meaning: - (आ) समन्तात् (याहि) गच्छ (पूर्वीः) पूर्वं भूताः (अति) (चर्षणीः) मनुष्यादिप्रजाः (आ) (अर्य्यः) स्वामी (आशिषः) आशीर्वादान् (उप) (नः) अस्मान् (हरिभ्याम्) वाय्वग्नीभ्याम् (इमाः) वर्त्तमानाः (हि) यतः (त्वा) त्वाम् (मतयः) प्रज्ञाः (स्तोमतष्टाः) विस्तृतस्तुतयः (इन्द्र) बह्वैश्वर्यप्रद (हवन्ते) आददति (सख्यम्) मित्रत्वम् (जुषाणाः) सेवमानाः ॥२॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! यया प्रज्ञया सर्वैः सह मित्रता स्यात्तया युक्ताः सन्तः सर्वाशिषः प्राप्य सुखं सततं प्राप्नुत ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो! ज्या बुद्धीने सर्वांबरोबर मैत्री होईल व आशीर्वाद मिळतील असे वागून निरंतर सुख प्राप्त करा. ॥ २ ॥