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गिर्व॑णः पा॒हि नः॑ सु॒तं मधो॒र्धारा॑भिरज्यसे। इन्द्र॒ त्वादा॑त॒मिद्यशः॑॥

English Transliteration

girvaṇaḥ pāhi naḥ sutam madhor dhārābhir ajyase | indra tvādātam id yaśaḥ ||

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Pad Path

गिर्व॑णः। पा॒हि। नः॒। सु॒तम्। मधोः॑। धारा॑भिः। अ॒ज्य॒से॒। इन्द्र॑। त्वाऽदा॑तम्। इत्। यशः॑॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:40» Mantra:6 | Ashtak:3» Adhyay:3» Varga:2» Mantra:1 | Mandal:3» Anuvak:4» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

Word-Meaning: - हे (गिर्वणः) वाणियों से याचना किये जाते (इन्द्र) तेजस्विन् ! जो (त्वादातम्, इत्) आपसे ग्रहण किया हुआ ही (यशः) रोगनाशक जल अन्न वा धन है उससे और (मधोः) मधुर आदि गुणों से युक्त वस्तु के (धाराभिः) प्रवाहों के साथ (सुतम्) उत्पन्न हुए (सोमम्) ओषधि आदि पदार्थ को पाये हुए हम लोगों से जाने जाते हो, वह आप (नः) हमारी (पाहि) रक्षा कीजिये ॥६॥
Connotation: - हे राजन् ! जितना पीने योग्य वस्तु अन्न और धन हम लोगों का आपने स्वीकार किया है, उससे अपनी और हम लोगों की रक्षा कीजिये ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे गिर्वण इन्द्र ! यत्त्वादातं यशोऽस्ति तेन मधोर्धाराभिश्च सह सुतं सोमं प्राप्तोऽस्माभिरज्यसे स त्वमस्मान् पाहि ॥६॥

Word-Meaning: - (गिर्वणः) यो गीर्भिर्वन्यते याच्यते तत्सम्बुद्धौ (पाहि) (नः) अस्मान् (सुतम्) (मधोः) मधुरादिगुणयुक्तस्य (धाराभिः) प्रवाहैः (अज्यसे) प्राप्यसे (इन्द्र) (त्वादातम्) त्वया गृहीतम् (इत्) एव (यशः) आरोग्यप्रदमुदकमन्नं धनं वा। यश इति उदकना०। निघं० १। १२। अन्ननामसु च। २। ७। धनना०। निघं० २। १०। ॥६॥
Connotation: - हे राजन् ! यावत्पेयमन्नं धनं चास्मद्भवता स्वीकृतं तेन स्वस्याऽस्माकं च रक्षा विधेहि ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे राजा! आमचे जितके खान-पान, धन स्वीकारलेले आहेस त्याने स्वतःचे व आमचे रक्षण कर. ॥ ६ ॥