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प्र दीधि॑तिर्वि॒श्ववा॑रा जिगाति॒ होता॑रमि॒ळः प्र॑थ॒मं यज॑ध्यै। अच्छा॒ नमो॑भिर्वृष॒भं व॒न्दध्यै॒ स दे॒वान्य॑क्षदिषि॒तो यजी॑यान्॥

English Transliteration

pra dīdhitir viśvavārā jigāti hotāram iḻaḥ prathamaṁ yajadhyai | acchā namobhir vṛṣabhaṁ vandadhyai sa devān yakṣad iṣito yajīyān ||

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Pad Path

प्र। दीधि॑तिः। वि॒श्वऽवा॑रा। जि॒गा॒ति॒। होता॑रम्। इ॒ळः। प्र॒थ॒मम्। यज॑ध्यै। अच्छ॑। नमः॑ऽभिः। वृ॒ष॒भम्। व॒न्दध्यै॑। सः। दे॒वान्। य॒क्ष॒त्। इ॒षि॒तः। यजी॑यान्॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:4» Mantra:3 | Ashtak:2» Adhyay:8» Varga:22» Mantra:3 | Mandal:3» Anuvak:1» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - (विश्वावारा) संसार के बीच जिस का स्वीकार है वह जिसकी (दीधितिः) दीप्ति (इळः) पृथिवियों की (यजध्यै) संगति करने के (होतारम्) ग्रहण करनेवाले की तथा (नमोभिः) अन्नों से (प्रथमम्) पहिले (वृषभम्) प्रशंसित की (वन्दध्यै) वन्दना करने अर्थात् स्तुति करने को (प्र, जिगाति) अच्छे प्रकार स्तुति करता है (सः) वह (इषितः) इच्छा से प्रयुक्त किया हुआ (यजीयान्) अतीव यज्ञ करनेहारा होता हुआ (देवान्) विद्वानों को (अच्छ) अच्छे प्रकार (यक्षत्) संगत कर मिलावे ॥३॥
Connotation: - जिसकी प्रकाशमान दीप्ति बिजुली के समान विद्या देनेवाले की प्रशंसा करती है, उसका सब विद्यार्थी जन सङ्ग कर दिव्य गुणों को प्राप्त होकर धन-धान्ययुक्त होवें ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

यस्य विश्ववारा दीधितिरिळो यजध्यै होतारं नमोभिः प्रथमं वृषभं वन्दध्यै प्रजिगाति स इषितो यजीयान् सन् देवानच्छ यक्षत् ॥३॥

Word-Meaning: - (प्र) (दीधितिः) दीप्तिः (विश्ववारा) विश्वस्मिन्वारो वरणं यस्याः सा (जिगाति) स्तौति (होतारम्) आदातारम् (इळः) पृथिवी। इळेति पृथिवीनाम। निघं० १। १। (प्रथमम्) आदिमम् (यजध्यै) यष्टुं सङ्गन्तुम् (अच्छ) सम्यक्। अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (नमोभिः) अन्नैः (वृषभम्) प्रशस्तम् (वन्दध्यै) वन्दितुं स्तोतुम् (सः) (देवान्) विदुषः (यक्षत्) यजेत् संगच्छेत् (इषितः) इच्छाप्रयुक्तः (यजीयान्) अतिशयेन यष्टा ॥३॥
Connotation: - यस्य प्रकाशमाना दीप्तिर्विद्युदिव विद्यादातारं प्रशंसति तं सर्वे विद्यार्थिनः संगत्य दिव्यान् गुणान् प्राप्य धनधान्ययुक्ता भवेयुः ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - ज्याची प्रकाशमय प्रभा विद्युतप्रमाणे विद्या देणाऱ्याची स्तुती करते, त्याची सर्व विद्यार्थ्यांनी संगती करून दिव्य सुख प्राप्त करावे व धनधान्यानी युक्त व्हावे. ॥ ३ ॥