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असू॑त॒ पूर्वो॑ वृष॒भो ज्याया॑नि॒मा अ॑स्य शु॒रुधः॑ सन्ति पू॒र्वीः। दिवो॑ नपाता वि॒दथ॑स्य धी॒भिः क्ष॒त्रं रा॑जाना प्र॒दिवो॑ दधाथे॥

English Transliteration

asūta pūrvo vṛṣabho jyāyān imā asya śurudhaḥ santi pūrvīḥ | divo napātā vidathasya dhībhiḥ kṣatraṁ rājānā pradivo dadhāthe ||

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Pad Path

असू॑त। पूर्वः॑। वृ॒ष॒भः। ज्याया॑न्। इ॒माः। अ॒स्य॒। शु॒रुधः॑। स॒न्ति॒। पू॒र्वीः। दिवः॑। न॒पा॒ता॒। वि॒दथ॑स्य। धी॒भिः। क्ष॒त्रम्। रा॒जा॒ना॒। प्र॒ऽदिवः॑। द॒धा॒थे॒ इति॑॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:38» Mantra:5 | Ashtak:3» Adhyay:2» Varga:23» Mantra:5 | Mandal:3» Anuvak:3» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब राजा के विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

Word-Meaning: - हे (नपाता) नाशरहित (राजाना) सूर्य्य और बिजुली के सदृश प्रकाशयुक्त राजा और न्यायाधीश ! आप दोनों जैसे (पूर्वः) पालन करनेवाला प्रथम (वृषभः) वृष्टिकर्त्ता (ज्यायान्) बड़ा वृद्ध (इमाः) इन (पूर्वीः) प्राचीन (शुरुधः) शीघ्र रुचिकारकों को (असूत) उत्पन्न करता है और (अस्य) इसके समीप से वृष्टिका वर्षायें हैं वैसे ही (दिवः) अन्तरिक्ष से (विदथस्य) विज्ञान करनेवाले के (प्रदिवः) विद्या और विनय के प्रकाशों को तथा (धीभिः) बुद्धि वा कर्मों से (क्षत्रम्) रक्षा करने योग्य राज्य को (दधाथे) धारण करते हो ॥५॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे क्रम से सूर्य्य जल के धारण और वृष्टि से इस संसार का हित करता है, वैसे ही उत्तम गुण और न्यायों के सहित वर्त्तमान हुए राजा आदि लोग उत्तम प्रकार रक्षित राज्य का पालन करैं ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ राजविषयमाह।

Anvay:

हे नपाता राजाना युवां यथा पूर्वो वृषभो ज्यायानिमाः पूर्वीः शुरुधोऽसूताऽस्य सकाशाद् वृष्टिकाः सन्ति तथैव दिवो विदथस्य प्रदिवो धीभिः क्षत्रं दधाथे ॥५॥

Word-Meaning: - (असूत) सूते (पूर्वः) पालकः प्रथमः (वृषभः) वर्षकः (ज्यायान्) महान्वृद्धः (इमाः) (अस्य) (शुरुधः) याः शु शीघ्रं रुध्नन्ति ताः (सन्ति) (पूर्वीः) प्राचीनाः (दिवः) अन्तरिक्षात् (नपाता) यौ न पततो विनश्यतस्तत्सम्बुद्धौ (विदथस्य) विज्ञानकरस्य (धीभिः) प्रज्ञाभिः कर्मभिर्वा (क्षत्रम्) रक्षितव्यं राज्यम् (राजाना) सूर्यविद्युताविव प्रकाशमानौ राज्यन्यायेशौ (प्रदिवः) प्रकृष्टान् विद्याविनयप्रकाशान् (दधाथे) धरथः ॥५॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथाऽनुक्रमेण सूर्यो जलधारणवर्षणाभ्यामस्य जगतो हितं करोति तथैव शुभगुणन्यायैः सह वर्त्तमानाः सन्तो राजादयः सुरक्षितं राज्यं पान्तु ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - भावार्थर् - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा सूर्य क्रमानुसार जल धारण करून वृष्टीने या जगाचे हित करतो तसेच राजाने उत्तम गुण व न्यायपूर्वक संरक्षण देऊन राज्याचे पालन करावे. ॥ ५ ॥