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पिबा॒ वर्ध॑स्व॒ तव॑ घा सु॒तास॒ इन्द्र॒ सोमा॑सः प्रथ॒मा उ॒तेमे। यथापि॑बः पू॒र्व्याँ इ॑न्द्र॒ सोमाँ॑ ए॒वा पा॑हि॒ पन्यो॑ अ॒द्या नवी॑यान्॥

English Transliteration

pibā vardhasva tava ghā sutāsa indra somāsaḥ prathamā uteme | yathāpibaḥ pūrvyām̐ indra somām̐ evā pāhi panyo adyā navīyān ||

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Pad Path

पिब॑। वर्ध॑स्व। तव॑। घ॒। सु॒तासः॑। इन्द्र॑। सोमा॑सः। प्र॒थ॒माः। उ॒त। इ॒मे। यथा॑। अपि॑बः। पू॒र्व्यान्। इ॒न्द्र॒। सोमा॑न्। ए॒व। पा॒हि॒। पन्यः॑। अ॒द्य। नवी॑यान्॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:36» Mantra:3 | Ashtak:3» Adhyay:2» Varga:19» Mantra:3 | Mandal:3» Anuvak:3» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) ऐश्वर्य्य की इच्छा करनेवाले ! (यथा) जैसे (पन्यः) स्तुति करने योग्य (नवीयान्) नवीन आप (अद्य) इस समय (पूर्व्यान्) पूर्व हुए जनों से उत्पन्न (सोमान्) श्रेष्ठ सोमलता रसरूप ऐश्वर्य आदि से युक्त पदार्थों का (अपिबः) पान करते हैं वैसे ही उनका (पाहि) पालन करो। हे (इन्द्र) तेजस्वी जन (तव) आपके जो (इमे) ये (प्रथमाः) पहिले (सुतासः) उत्पन्न हुए (सोमासः) ऐश्वर्य करनेवाले पदार्थ (घ) ही हैं, उनका पालन करो (उत) और उत्तम रसों का (पिब) पान करो, उनसे (एव) ही (वर्धस्व) वृद्धि को प्राप्त होओ ॥३॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो मनुष्य उत्तम प्रकार संस्कारयुक्त रसों का पान करैं, उनकी वृद्धि होवै और जो वृद्धि को प्राप्त होकर धर्म का आचरण करैं, वे सम्पूर्ण ऐश्वर्य को प्राप्त होवैं ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे इन्द्र ! यथा पन्यो नवीयाँस्त्वमद्य पूर्व्यान् सोमानपिबस्तथैतान् पाहि। हे इन्द्र तव य इमे प्रथमाः सुतासः सोमासो घ सन्ति तान् पाहि उतोत्तमान् रसान् पिब तैरेव वर्धस्व ॥३॥

Word-Meaning: - (पिब) अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दार्घः। (वर्धस्व) (तव) (घ) एव अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (सुतासः) निष्पन्नाः (इन्द्र) ऐश्वर्य्यमिच्छो (सोमासः) ऐश्वर्य्यकराः पदार्थाः (प्रथमाः) आदिमाः (उत) (इमे) (यथा) (अपिबः) पिबति (पूर्व्यान्) पूर्वैर्निष्पादितान् (इन्द्र) (सोमान्) उत्तमान् सोमरसैश्वर्य्यादियुक्तान् (एव) निश्चये (पाहि) (पन्यः) स्तुत्यः (अद्य) इदानीम्। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (नवीयान्) नूतनः ॥३॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। ये मनुष्या सुसंस्कृतान् रसान् पिबेयुस्ते वर्धेरन्। ये वृद्धा भूत्वा धर्ममाचरेयुस्ते सर्वैश्वर्य्यमाप्नुयुः ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जी माणसे उत्तम प्रकारे संस्कारयुक्त रसाचे पान करतात त्यांची वृद्धी होते व जी वृद्धी होऊन धर्माचे आचरण करतात ती संपूर्ण ऐश्वर्य प्राप्त करतात. ॥ ३ ॥