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इ॒मामू॒ षु प्रभृ॑तिं सा॒तये॑ धाः॒ शश्व॑च्छश्वदू॒तिभि॒र्याद॑मानः। सु॒तेसु॑ते वावृधे॒ वर्ध॑नेभि॒र्यः कर्म॑भिर्म॒हद्भिः॒ सुश्रु॑तो॒ भूत्॥

English Transliteration

imām ū ṣu prabhṛtiṁ sātaye dhāḥ śaśvac-chaśvad ūtibhir yādamānaḥ | sute-sute vāvṛdhe vardhanebhir yaḥ karmabhir mahadbhiḥ suśruto bhūt ||

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Pad Path

इमाम्। ऊँ॒ इति॑। सु। प्रऽभृ॑तिम्। सा॒तये॑। धाः॒। शश्व॑त्ऽशश्वत्। ऊ॒तिऽभिः॑। याद॑मानः। सु॒तेऽसु॑ते। व॒वृ॒धे॒। वर्ध॑नेभिः। यः। कर्म॑ऽभिः। म॒हत्ऽभिः॑। सुऽश्रु॑तः। भूत्॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:36» Mantra:1 | Ashtak:3» Adhyay:2» Varga:19» Mantra:1 | Mandal:3» Anuvak:3» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब ग्यारह ऋचावाले छत्तीसवें सूक्त का प्रारम्भ है। उसके पहिले मन्त्र से मनुष्य किस प्रकार के आचरण से सुख को प्राप्त हों, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे विद्वान् पुरुष ! (यः) जो विद्या की (यादमानः) याचना करते हुए आप (ऊतिभिः) रक्षण आदिकों से (सातये) संविभाग के लिये (इमाम्) इस (प्रभृतिम्) उत्तम धारणा और (शश्वच्छश्वत्) व्यापक व्यापक वस्तु को (सु) उत्तम प्रकार (धाः) धारण करें (वर्धनेभिः) वृद्धि के साधनों और (महद्भिः) बड़े (कर्मभिः) करनेवाले के अतीव चाहे हुए व्यवहारों से (सुतेसुते) उत्पन्न-उत्पन्न हुए पदार्थ में (वावृधे) बढ़ें (उ) वही (सुश्रुतः) उत्तम प्रकार श्रोता (भूत्) होवें ॥१॥
Connotation: - जो मनुष्य कार्य्य के विज्ञान का प्रारम्भ करके पर पर अर्थात् बड़े से छोटे उससे और छोटे उससे भी छोटे इत्यादि सूक्ष्म कारण पर्य्यन्त व्यापक परमाणुरूप पदार्थ को जानकर उपयोग करें कार्य में लावें, वे इस संसार में अत्यन्त वृद्धि को प्राप्त होवैं और जो लोग विद्वान् जनों से केवल विद्या की ही याचना करते हैं, वे बहुश्रुत होते हैं ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ मनुष्याः केनाचरणेन सुखामाप्नुयुरित्याह।

Anvay:

हे विद्वन् ! यो विद्यां यादमानस्त्वमूतिभिः सातय इमां प्रभृतिं शश्वच्छश्वद्वस्तु च सु धा वर्द्धनेभिर्महद्भिः कर्मभिः सुतेसुते वावृधे स उ सुश्रुतो भूत् ॥१॥

Word-Meaning: - (इमाम्) (उ) वितर्के (सु) शोभने (प्रभृतिम्) प्रकृष्टां धारणाम् (सातये) संविभागाय (धाः) दध्याः (शश्वच्छश्वत्) व्यापकं व्यापकं वस्तु (ऊतिभिः) रक्षणादिभिः (यादमानः) याचमानः। अत्र वर्णव्यत्ययेन चस्य दः। (सुतेसुते) निष्पन्ने निष्पन्ने पदार्थे (वावृधे) वर्धेत (वर्धनेभिः) वर्धकैः साधनैः (यः) (कर्मभिः) कर्त्तुरीप्सिततमैः (महद्भिः) (सुश्रुतः) शोभनं श्रुतं यस्य सः (भूत्) भवेत्। अत्राडभावः ॥१॥
Connotation: - ये मनुष्या कार्य्यविज्ञानमारभ्य परस्परं सूक्ष्मकारणपर्य्यन्तं विभुं पदार्थं विज्ञाय उपयुञ्जीरन् तेऽत्र जगति वर्धेरन्। ये विद्वद्भ्यो विद्यामेव याचन्ते ते बहुश्रुतो जायन्ते ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात इंद्र, विद्वान, राजा व प्रजा यांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वीच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - जी माणसे कार्याचा आरंभ करून मोठ्यापासून छोट्यापर्यंत त्यांच्या सूक्ष्म कारणापर्यंत व्यापक परमाणूरूप पदार्थ जाणून उपयोग करतात व कार्यात आणतात ते या संसारात वर्धित होतात व जे लोक विद्वान लोकांकडे केवळ विद्येची याचना करतात ते बहुश्रुत असतात. ॥ १ ॥